भारत में जहांगीर ने बनवाई थी सबसे पहली इमरती, पहले इसका था ये नाम
Imarti: इमरती खाना किसे पसंद नहीं होगा! लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि पहली बार इमरती कब बनाई गई होगी, तो यह स्टोरी फिर आपके लिए है. आइए जानते हैं.
Imarti: जब बाजार में व्यक्ति निकलता है और मिठाई की दुकान से होकर गुजरता है और अगर कभी उसे उस दुकान पर इमरती दिखाई दे देती है तो कई बार उसके मुंह से पानी निकल आती है. इमरती को जलेबी की चचेरी बहन भी कहा जाता है. स्वाद और बनावट में बिल्कुल यह जलेबी की कॉपी लगती है तो आखिर जब जलेबी ऑलरेडी इस तरह की एक मिठाई है तो इमरती की शुरुआत क्यों की गई? क्या है इसका इतिहास? आज की स्टोरी में हम इसी बात पर चर्चा करने वाले हैं.
क्या है इमरती का इतिहास?
इमरती के इतिहास की बात करें तो यह मुगल काल से जुड़ा है. यह बात तब की है जब भारत में मुगलों का राज हुआ करता था और उसे समय राजकुमार जहांगीर को मिठाई का काफी शौक था. वह रोज की मिठाई खाकर काफी थक गए थे तो उन्होंने अपने यहां के रसोइयों को आदेश दिया कि आज उन्हें कुछ नया मिठाई खाना है. उनके यहां खाना बनाने वाले खानसामा को इमरती जैसा एक डेजर्ट याद आया, जिसे फारसी भाषा में जुलमिया भी कहते हैं. उसके लिए उन्होंने थोड़ा सा उसमें ट्विस्ट किया और उड़द की दाल का बैटर बनाकर उसे पहले फ्राई किया और उसके बाद उसको चाशनी में डूबा कर राजकुमार के सामने पेश कर दिया. यह मिठाई राजकुमार को काफी अधिक पसंद आई और इस समय उसका नाम जांगरी रख दिया गया.
जलेबी से अलग होती है इमरती
आप अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि इमरती जब बिल्कुल जलेबी के जैसे ही होती है तो फिर यह जलेबी से अलग कैसे हैं. आपके इस सवाल का जवाब यह है कि जलेबी को बनाने के लिए मैदा का इस्तेमाल किया जाता है और इमरती को तैयार करने के लिए उड़द की दाल का. दोनों को बनाने का प्रोसेस अलग होता है. हां, दोनों दिखने में लगभग एक जैसे लगते हैं. इमरती को तैयार करने के बाद उसे कुछ देर के लिए चाशनी में छोड़ा जाता है ताकि उसका टेस्ट सही से निखर कर सामने आ सके.
ये भी पढ़ें: चाह कर भी बाजार रेट पर नहीं खरीद सकते ये आलू, एक किलो के लिए देना पड़ता है 50 हजार रुपये