राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु 27 जून के दिन 18वीं लोकसभा के विशेष सत्र को संबोधित करने के लिए पहुंची थीं, लेकिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के संसद पहुंचने से ज्यादा चर्चा सेंगोल को लेकर हुई है. गौरतलब है कि नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ ही संसद भवन में सेंगोल को बहुत धूमधाम से स्थापित किया गया था. आज हम आपको बताएंगे कि संसद भवन में किस जगह पर सेंगोल स्थापित किया गया और इसको लेकर चर्चा क्यों हो रही है? 


क्यों चर्चा में आया सेंगोल?


संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु गुरुवार को संसद पहुंची थीं. राष्ट्रपति मुर्मु जब संसद भवन के द्वार पर पहुंचीं तो उनके स्वागत के लिए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला मौजूद थे. इससे अलग सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी ने संसद भवन से सेंगोल को हटाकर उसके स्थान पर संविधान की प्रति स्थापित करने की मांग की, जिसके बाद सेंगोल एक बार फिर चर्चा में है.


संसद भवन में कहां रखा है सेंगोल?


गौरतलब है कि 28 मई 2023 के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन का उद्घाटन किया था. उस दौरान उन्होंने संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया था. बता दें कि उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के अधीनम मठ से सेंगोल स्वीकार किया था और इसे लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया गया. आज भी सेंगोल लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के आसन के पास स्थापित है. 


क्या होता है सेंगोल?


बता दें कि सेंगोल शब्द तमिल के सेम्मई शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ नीतिपरायणता होता है. इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम यानि पुरोहितों का आशीर्वाद मिला हुआ है. भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सेंगोल का काफी ज्यादा महत्व है. कहा जाता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जब प्रधानमंत्री के रूप में अपना पद संभाला था, तब उन्हें यह सौंपा गया था. 


यह भी कहा जाता है कि ब्रिटिश सरकार से भारत के हाथ में जब सत्ता आई थी, तब वह सौंपा गया था. ऐसे में इसे शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जाता है. इसका जनक सी. राजगोपालचारी को कहा जाता है, जो कि चोल साम्राज्य से काफी प्रेरित थे. बता दें कि चोल साम्राज्य में जब भी एक राजा से दूसरे राजा के पास सत्ता का हस्तांतरण होता था, तब इस तरह का सेंगोल दूसरे राजा को दिया जाता था. 


सेंगोल का निर्माण चेन्नई के एक सुनार वुमुदी बंगारू चेट्टी ने किया था, जिसके बाद इसे लॉर्ड माउंटबैटन द्वारा 15 अगस्त 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया. दिखने में सेंगोल पांच फीट लंबी छड़ी होती है, जिसके सबसे ऊपर भगवान शिव का वाहन कहे जाने वाली नंदी विराजमान होते हैं. नंदी न्याय व निष्पक्षता को दर्शाते हैं. 


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