"नर्क का द्वार" एक ऐसा शब्द है जो धार्मिक ग्रंथों, पुरानी कहानियों में अलग-अलग तरह से बताया गया है. लेकिन क्या यह सिर्फ एक मिथक है, या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार है? कुछ समय पहले वैज्ञानिकों ने उत्तरी साइबेरिया में एक जगह की पहचान की है, जिसे "नर्क का द्वार" कहा जाता है. चलिए आज हम इस आर्टिकल में नर्क के द्वार के बारे में जानते हैं. इसने वैज्ञानिकों को भी परेशान कर दिया है.
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क्या है साइबेरिया में मौजूद नर्क का द्वार?
बता दें ये नर्क का द्वार साइबेरिया में मौजूद है. साइबेरिया का 'नर्क का द्वार' नामक विशाल सिंकहोल लगातार बढ़ रहा है, जिसने वैज्ञानिकों को गंभीर चिंता में डाल दिया है. इस सिंकहोल, जिसे बातागाइका क्रेटर के नाम से भी जाना जाता है, जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से फैल रहा है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
बातागाइका क्रेटर साइबेरिया के यानी हाईलैंड्स में स्थित एक विशाल गड्ढा है. इसका आकार लगातार बढ़ रहा है और अब यह कई सौ मीटर चौड़ा और गहरा हो चुका है. इस गड्ढे का निर्माण परमाफ्रॉस्ट के पिघलने के कारण हुआ है. परमाफ्रॉस्ट जमीन की वह परत होती है जो साल भर जमी रहती है. जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ने से यह परमाफ्रॉस्ट पिघल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप जमीन धंस रही है और बड़े-बड़े गड्ढे बन रहे हैं.
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आखिर क्यों खतरनाक है नर्क का द्वार?
वैज्ञानिक भी इस नर्क के द्वार को लेकर चिंतित हैं. दरअसल परमाफ्रॉस्ट में बड़ी मात्रा में मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसें फंसी हुई हैं. जब परमाफ्रॉस्ट पिघलता है, तो ये गैसें वायुमंडल में छूटती हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है. साथ ही परमाफ्रॉस्ट में कई प्राचीन सूक्ष्मजीव और वायरस फंसे हुए हैं। जब परमाफ्रॉस्ट पिघलता है, तो ये सूक्ष्मजीव और वायरस सक्रिय हो सकते हैं, जिससे बीमारियों का प्रकोप फैलने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा परमाफ्रॉस्ट के पिघलने से जमीन अस्थिर हो जाती है, जिसके कारण भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है. साथ ही साइबेरिया में रहने वाले स्थानीय समुदायों के लिए बातागाइका क्रेटर एक बड़ा खतरा है। यह गड्ढा लगातार बढ़ रहा है और इससे स्थानीय लोगों के घर और खेत तबाह हो सकते हैं.
बता दें बातागाइका क्रेटर को रोकने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को रोकना सबसे जरुरी है. इसके लिए हमें जीवाश्म ईंधनों का उपयोग कम करना होगा और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाना होगा. साथ ही हमें वनों की कटाई को रोकना होगा और पेड़ लगाने को बढ़ावा देना होगा.
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