मौसम बदलने के साथ ही कई राज्यों में सर्दी-जुकाम-बुखार की समस्या आनी शुरू हो चुकी है. इस दौरान अधिकांश लोग ब्लड टेस्ट कराकर डॉक्टर्स से दवाई लेते हैं. लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि दवाइयों के कैप्सूल के ऊपर कवर होता है. आज हम आपको बताएंगे कि दवाइयों के ऊपर कैप्सूल के कवर किस केमिकल के बने होते हैं, जो पेट में जाने के बाद घुल जाते हैं. 


ऐसे होते हैं कैप्सूल के कवर


बाजार में कई तरह की दवाइयां मौजूद हैं. इसमें कैप्सूल किसी कवर से बंद रहते हैं. कुछ कैप्सूल के कवर तो इतने पारदर्शी होते हैं कि उनके अंदर के मेडिसिन पदार्थ भी दिखते हैं. क्या आप जानते हैं कि ये दवाइयां कैसे बनाई जाती हैं और ये कवर किस केमिकल से बने होते हैं? 


बता दें कि इस तरह की मेडिसिन में दवाइयों को पीस कर उनका पाउडर भर दिया जाता है. कैप्सूल बनाने के इस तरीके को इनकैप्सुलेशन कहते हैं. अब सवाल फिर से वही है कि प्लास्टिक की तरह दिखने वाला यह कवर किस पदार्थ का बनता है और यह कितना सुरक्षित होता है? बता दें कि इस कवर वाले हिस्से को कई बार लोग प्लास्टिक से बना समझते हैं, हालांकि यह कवर जिलेटिन से बनता है.


कैसे बनता कैप्सूल का कवर?


कैप्सूल के पैकेट या डिब्बे पर उसमें मौजूद मेडिसिन कंटेंट की जानकारी दी जाती है. हालांकि कई कंपनियां डिब्बे पर ये नहीं बताती हैं कि कैप्सूल कवर ‘जिलेटिन’ से बना हुआ है. अब सवाल यह है कि जिलेटिन कैसे बनता है? जानकारी के मुताबिक, जिलेटिन को जानवरों की हड्डियों या स्किन को उबालकर निकाला जाता है. इसके बाद इसे प्रॉसेस कर चमकदार और लचीला बना दिया जाता है. 


क्या हर कैप्सूल का कवर होता है नॉन वेज?


बता दें कि कैप्सूल के कवर दो तरह के होते हैं. पहला हार्ड शेल्ड होता है तो दूसरा सॉफ्ट शेल्ड होता है. दोनों ही तरह के कैप्सूल कवर्स जानवरों के साथ-साथ प्रोटीन वाले पेड़-पौधों के लिक्विड से भी बनाए जाते हैं. जो कैप्सूल्स के कवर जानवरों के प्रोटीन से बनाए जाते हैं, उसको जिलेटिन कहा जाता है. इसमें मुर्गा, मछली, सुअर और गाय के साथ कई प्रजाति के बाकी जानवरों की हड्डियों या त्वचा को उबालकर निकाल लिया जाता है. 


एक रिपोर्ट के मुताबिक जिलेटिन आधारित कैप्सूल का अधिक इस्तेमाल करने पर किडनी और लिवर को नुकसान पहुंच सकता है. वहीं, जो कैप्सूल कवर्स प्रोटीन वाले पेड़-पौधों के लिक्विड से बनाए जाते हैं, उन्हें सेल्यूलोज कहा जाता है. ये पूरी तरह से कुदरती होते हैं. इस तरह के कैप्सूल को हमारा पाचन तंत्र आसानी से पचा लेता है. कैप्सूल के ज्यादातर कवर इसी प्रोसेस के तहत बनाए जाते हैं. 


ऐसे बनता है कैप और कंटेनर 


इसके अलावा कैप्सूल बनाने में जिलेटिन या सेल्यूलोज के कवर का ही इस्तेमाल किया जाता है. इस कवर में दवाई पीसकर भरी जाती है. कैप्सूल के कवर को दो अलग रंगों से बनाया जाता है. एक हिस्से को कंटेनर कहते हैं, इसमें दवाई भरी जाती है. वहीं, दूसरे हिस्से को कैप कहा जाता है, जिससे कैप्सूल को बंद किया जाता है. जानकारी के मुताबिक कैप और कंटेनर का रंग इसलिए अलग रखा जाता है, जिससे कैप्सूल बनाते समय कर्मचारियों से गलती होने की गुंजाइश न हो. 


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