भारत के किन-किन मुसलमानों को मिलता है आरक्षण? क्या जाति के हिसाब से बंटा है सिस्टम
बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव ने मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने की वकालत की है, ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर मुसलमानों को आरक्षण कैसे दिया जाता है.
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देश में चुनावी माहौल है, इसी बीच सियासी सरगर्मी में एक बार फिर मुस्लिम आरक्षण पर बहस शुरू हो गई है. बीजेपी गठबंधन पर मुस्लिमों को आरक्षण देने का आरोप लगा रही है तो वहीं दूसरी ओर अब इस मामले में विपक्षी दल भी खुलकर सामने आ गए हैं. इसी बीच अब बिहार के पूर्व सीएम और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने मुसलमानों को आरक्षण देने की खुलकर वकालत की है. इस सियासी बयानबाजी के बीच सवाल ये उठता है कि आखिर मुसलमानों का आरक्षण मिलता कैसे है? क्या इसमें भी जाति के हिसाब से सिस्टम बंटा हुआ है? चलिए जान लेते हैं.
क्या है मुस्लिम आरक्षण की व्यवस्था?
बता दें कि केंद्र और राज्य स्तर पर कई मुसलमानों को ओबीसी आरक्षण दिया जाता है. वहीं एक रिपोर्ट अनुसार, फिलहाल मुसलमानों की 36 जातियों को केंद्रीय स्तर पर ओबीसी आरक्षण दिया जाना है. जिसके लिए संविधान के अनुच्छेद 16(4) में व्यवस्था है. जिसके अनुसार, यदि सरकार को लगता है कि नागरिकों का कोई वर्ग पिछड़ा है तो नौकरियों में उनके सही प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण दिया जा सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र की ओबीसी लिस्ट में कैटेगरी 1 और 2A में मुसलमानों की 36 जातियों को शामिल किया गया है. हालांकि जिन मुस्लिम परिवारों की सालाना आय आठ लाख रुपये है उन्हें क्रीमी लेयर में रखा जाता है और वो आरक्षण के अंतर्गत नहीं आते, फिर भले ही वो लोग पिछड़ा जाती से क्यों नहीं आते.
क्यों मुस्लिमों को आरक्षण देने की बात बार-बार सामने आती है?
दरअसल कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मुसलमान, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं. साल 2006 में ये कहा गया था कि मुसलमान समुदाय हिंदू ओबीसी से पिछड़ा हुआ है. सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि हिंदू पिछड़ों और दलितों को तो आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है लेकिन मुस्लिमों को नहीं. इससे पहले मंडल आयोग ऐसे 82 सामाजिक वर्गों की पहचान कर चुका था, जिसे उसने पिछड़ा मुसलमान माना था.
वहीं साल 2009 में रिटायर्ड जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की कमेटी मुस्लिम आरक्षण की वकालत कर चुकी है. कमेटी का सुझाव था कि अल्पसंख्यकों को 15 फीसदी आरक्षण दिया जाए. जिसमें मुसलमानों को 10 फीसदी और बाकी पिछड़ा वर्ग के लोगों को 5 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी.
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