New Criminal Rules from 1st July: भारत में एक जुलाई से नया कानून लागू होने जा रहा है. अब देश में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और भारतीय साक्ष्य संहिता लागू होगा. इसके तहत कहीं भी जीरो एफआईआर दर्ज कराई जा सकेगी. इसके अलावा हर थाने में एक पुलिस अफसर की नियुक्ति होगी, जिसके पास किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी से जुड़ी हर जानकारी होगी. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर जीरो एफआईआर होती क्या है और इनमें कौन से नियम लागू होते हैं.
क्या होती है जीरो एफआईआर?
जीरो एफआईआर वो एफआईआर है जो किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज की जा सकती है. चाहे अपराध किसी भी स्थान पर हुआ हो या पुलिस स्टेशन का अधिकार क्षेत्र कुछ भी हो.
बता दें शून्य एफआईआर नाम शून्य सीरियल नंबर को दर्शाता है. पुलिस इस एफआईआर को शून्य सीरियल नंबर के तहत दर्ज करती है और इसे उस पुलिस स्टेशन को ट्रांसफर करना होता है, जहां इसकी जांच होनी चाहिए या उस पुलिस स्टेशन को जो उस क्षेत्र या अधिकार क्षेत्र में अधिकार रखता हो.
किन अपराधों में दर्ज होती है जीरो एफआईआर?
बता दें जीरो एफआईआर दो तरह के मामलों में दर्ज होती है, पहला होता है संज्ञेय अपराध और दूसरा असंज्ञेय अपराध. असंज्ञेय अपराध मामूली अपराध होते हैं, जैसे मामूली मारपीट जैसी घटनाएं. ऐसे मामलों में सीधे तौर पर एफआईआर नहीं दर्ज की जा सकती, बल्कि शिकायत को मैजिस्ट्रेट को रेफर किया जाता है और मैजिस्ट्रेट इस मामले में आरोपी को समन जारी कर सकता है. उसके बाद मामला शुरू होता है. यानी ऐसे मामले में चाहे जूरिस्डिक्शन हो या न हो किसी भी हाल में केस दर्ज नहीं हो सकता.
दूसरा होता है असंज्ञेय अपराध. ये गंभीर किस्म के अपराध होते हैं. ऐसे मामले में गोली चलाना, मर्डर व रेप आदि घटनाएं होती हैं, इनमें सीधे एफआईआर दर्ज की जाती है. सीआरपीसी की धारा-154 के तहत पुलिस को संज्ञेय मामले में सीधे तौर पर एफआईआर दर्ज करना जरूरी होता है.
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