राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव 2024 दो सीटों से लड़ा था. पहली सीट थी वायनाड और दूसरी थी रायबरेली. इस चुनाव में राहुल गांधी को दोनों ही सीटों से जीत हासिल हुई थी. हालांकि नियमों के अनुसार वो दोनों ही सीटों से सांसदी बरकरार नहीं रख सकते. ऐसे में उन्हें दो में से एक सीट को छोड़ना ही था, लिहाजा उन्होंने वायनाड से इस्तीफा दे दिया और रायबरेली में अपनी सांसदी बरकरार रखी. अब वायनाड में फिर उपचुनाव होंगे, जिसमें किसी एक नेता को सांसद चुना जाएगा. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर ये उपचुनाव का खर्च उठाता कौन है, वो नेता जिसने नाम वापस लिया है या फिर चुनाव आयोग? चलिए जान लेते हैं.
क्यों होता है उपचुनाव?
ये पहली बार नहीं है जब किसी नेता ने दो सीटों से चुनाव लड़ा है, पहले भी ऐसा होता आया है. ऐसे में जब दोनों सीटों से वो नेता चुनाव जीत जाता है तो दोनों ही सीटों पर वो अपनी सांसदी बरकरार नहीं रख सकता. उसे दोनों में से कोई एक सीट छोड़नी होती है. फिर जब वो किसी एक सीट से इस्तीफा दे देता है तो उस सीट पर उपचुनाव के जरिए सांसद चुना जाता है.
इसे विशेष चुनाव के रूप में भी जाना जाता है, भारत के विधायी निकायों में उपचुनाव खाली सीटों को भरने के लिए किया जाता है. उपचुनाव सिर्फ किसी के सीट छोड़ने पर ही आयोजित नहीं होता, बल्कि निलबंन, इस्तीफे, अयोग्यता या मौजूदा सदस्य के निष्कासन जैसे कारणों के चलते भी कोई सीट खाली रह जाती है तब भी उपचुनाव करवाया जाता है.
कौन उठाता है उपचुनाव का खर्च?
सबसे पहला सवाल ये है कि आखिर ये उपचुनाव करवाता कौन है? तो बता दें कि किसी भी प्रकार का चुनाव करवाने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग के हाथ में ही होती है. चुनाव आयोग निरपक्ष चुनाव के लिए जिम्मेदार होता है. ऐसे में उस चुनाव में होने वाले खर्च के लिए भी चुनाव आयोग ही जिम्मेदार होता है.
कब होता है उपचुनाव?
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151A निर्वाचन आयोग को संसद और राज्य विधानमंडलों के सदनों में आकस्मिक रिक्तियों की तारीख से छह महीने के भीतर उपचुनावों के माध्यम से भरने के लिए अधिदेशित करती है, हालांकि इसमें शर्त ये भी होती है कि उस पद के लिए कार्यकाल की शेष अवधि एक साल या उससे ज्यादा हो.
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