Habit and Jean: हमारी जिंदगी किस दिशा में जायेगी यह बहुत हद तक हमारी आदतों पर निर्भर होता है. कई आदतें तो बहुत आसानी से बदल जाती हैं, लेकिन कई को बदलना काफी मुश्किल होता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि आदतों के लगने और छूटने में काफी हद तक हमारे जीन्स भी जिम्मेदार होते हैं. आजकल लोगों को शराब और इंटरनेट की लत सी लग गई है. इनका नशा ऐसा है, जो एक बार लग जाए तो छूटना मुश्किल हो जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये आदत क्यो लग जाती है? यूरोप में हुई एक रिसर्च में कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. इस रिसर्च में शराब और इंटरनेट की लत लगने के पीछे का कारण सामने आया है. आइए जानते हैं...
आदतों के लिए जीन होते हैं जिम्मेदार
पर्सनलाइज्ड मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इन आदतों के लिए इंसान के जीन दोषी हैं और रिसर्च में वैज्ञानिकों ने उस जीन को खोजने का दावा भी किया है. हमारी हर आदत का संबंध अनुवांशिकी से होता है, जीन के जरिए ही हमें अपने पूर्वजों से ये आदतें मिलती हैं. हालांकि, समय के साथ जीन में बदलाव भी होता है और इसी वजह से कुछ आदतों में बदलाव भी होता है. रिसर्च में हंगरी के एक कॉलेज के 3003 युवाओं के डीएनए के सैंपल लिए गए. इन युवाओं को एक प्रश्नपत्र दिया गया था जिसमें उन्हें अपने शराब, ड्रग, तम्बाकू, ऑनलाइन गेमिंग, जुआ, इंटरनेट आदि इस्तेमाल करने के तरीके और समय आदि के बारे में विस्तार से जानकारी देने को कहा गया. तब यह सामने आया कि तमाम तरह के नशों का संबंध 32 तरह के जीन्स से है.
शराब की लत के लिए यह जीन जिम्मेदार
हंगरी की सेमेलइविस यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर कसाबा बाटा ने बताया कि इंसान की किसी भी आदत या गुण में 50 से 70% भूमिका उसके जीन की होती है. उन्होंने बताया कि फाक्स-एन 3 वह जीन है जो शराब की लत के लिए जिम्मेदार होता है, जिसका आरएस 59364 से संबंध होता है. कसाबा कहती हैं कि इस अध्ययन से यह पता लगाया जा सकेगा कि किस जीन के कमजोर होने पर इंसान किस लत का शिकार बना सकता है.
शराब से ज्यादा बुरी इंटरनेट की लत
एक अन्य शोध में यह भी सामने आया कि शराब से ज्यादा खराब लत इंटरनेट की होती है. अंतरराष्ट्रीय दूर संचार संघ की ओर से कराई गई यह रिसर्च कहती है कि विकसित देशों में इंटरनेट पर व्यस्त रहने वाले लोगों में से 94% संख्या 15 से 24 साल की उम्र के लोगों की है. जबकि, विकासशील देशों में यह आंकड़ा 65% से अधिक है.
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