इंसान और जावर के बीच अक्सर टकराव देखने को मिलता है. कई बार इस टकराव में किसी की जान पर तक बन आती है. कई बार ये जानवर आदमखोर बन जाते हैं जिसके चलते आमजन को कई परेशानियां होती हैं. पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कई इलाके दो आदमखोर भेड़ियों के आतंक से परेशान थे. वहीं आए दिन गांवों-कस्बों में आदमखोर जानवरों से लोगों के परेशान होने की खबरें सामने आती रहती हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर कोई जानवर आदमखोर कब बन जाता है और उन्हें गोली मारने के आदेश कौन देता है.
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कब कोई जानवर बन जाता है आदमखोर?
इल्ड लाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11 में इसको विस्तार से बताया गया है. जब कोई जानवर इंसानों पर हमला करता है और उसे घायल या मार डालता है, तो उसे आदमखोर कहा जाता है. आदमखोर या ह्यूमन ईटर एक प्रचलित शब्द है, लेकिन इसका असली शब्द है डेंजरस टू ह्यूमन लाइफ. यानी इंसानों के लिए खतरनाक.
ऐसी स्थिति में जानवर को पकड़ने या मारने का फैसला लेना एक कठिन और परेशान कर देने वाला मुद्दा होता है. हालांकि कई बार आदमखोर जानवर इंसानों के लिए खतरा बन जाते हैं. दूसरी ओर इन जानवरों को मारना वन्यजीव संरक्षण के सिद्धांतों के विरुद्ध होता है. साथ ही आदमखोर जानवरों के हमले से स्थानीय समुदायों का जीवन प्रभावित होता है और पर्यटन जैसी गतिविधियां भी प्रभावित हो सकती हैं. ऐसी स्थिति में कई बार आदमखोर जानवर को मारने का निर्णय लेना होता है.
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कौन करता है मारने के आदेश जारी?
किसी भी जानवर को बिना किसी परमिशन के नहीं मारा जा सकता है. ऐसे में चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन (chief wildlife warden) ही किसी जानवर को मारने के आदेश जारी कर सकते हैं. वाइल्डलाइफ एक्ट 1972 के सेक्शन 11 (1) में इसकी जानकारी दी गई है. हर राज्य में एक चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन होते हैं और उन्हीं के आदेश पर किसी खूंखार हो चुके जानवर का शिकार किया जा सकता है.
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