सन् 1526 में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई थी. बाबर ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य स्थापित किया था. इसके बाद 1857 तक मुगल साम्राज्य भारत में राज करता रहा. जिसके आखरी शासक बहादुर शाह जफर थे. पुराने समय में राजा अपनी आत्मकथा लिखकर जाते थे. जो कि भविष्य के लिए एक प्रमाणित दस्तावेज होती थी. मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने भी अपने आत्मकथा लिखी थी. जिसमें उन्होंने कई चौंकाने वाली बातेंलिखी थी. बाबरनामा में मुगल बादशाह ने एक लड़के से हुए इश्क का भी जिक्र किया था. आइए जानते हैं. क्या है यह पूरी कहानी.
ऐसे हुई पहली शादी
बाबर ने अपनी आत्मकथा तुर्की भाषा में लिखी थी जिसका नाम था तुज़्क-ए-बाबरी और जिसे बाबरनाम भी कहा जाता है. तुज़्क-ए-बाबरी यानी बाबरनामा में बाबर ने अपनी पहली शादी के बारे में जिक्र किया है. बाबर अपनी पहली शादी को लेकर लिखता है 'आयशा सुल्तान बेगम मेरे चचा सुल्तान अहमद मिर्जा की बेटी, जिससे मेरे बाप और चचा की जिंदगी में मंगनी हो गई थी. हालांकि, जब नई नई शादी हुई तो मुझे उससे बहुत मोहब्बत थी, मगर मारे शर्म के दसवीं, पंद्रवीं, बीसवीं दिन में उसके पास जाया करता था और आखिर खुद ही वो मोहब्बत न रही और हिजाब (दूरी) और ज्यादा हो गया. डेढ़ दो महीने के बाद मेरी मां खानीम ने बहुत धमकाया और मुझे उसके पास भेजा.'
बाबरी से इश्क का किस्सा
बाबरनामा में आगे बाबर ने बाबरी नाम के लड़के से अपने इश्क की कहानी को बयां किया है. बाबर ने लिखा है 'उर्दू बाजार में एक लड़का था. बाबरी नाम. जिसमें हमनामी (एक जैसा नाम) की भी एक मुनासबत थी. उन्हीं दिनों में मुझे उसके साथ अजीब लगवा पैदा हो गया.उससे पहले किसी पर फरेफ्ता (आशिक) न हुआ था. किसी से मेहर-व-मोहब्बत की बात तक न की थी. बल्कि दिल्लगी का नाम भी न सुना था.'
बाबर ने बाबरनामा में बड़ी बेबाकी के साथ बाबरी के साथ अपने इश्क के किस्से को दुनिया के सामने रखा है. बाबर ने आगे लिखा है 'मगर हाल ये था कि अगर कभी बाबरी मेरे साथ आ जाता था तो मारे शर्म के मैं निगाह भरकर भी उसकी तरफ न देख सकता था. जी चाहे कि उससे मिल सकू और बातें कर सकूं. इज़्तिराब-ए-दिल (बेकरारी) की ये हालत थी कि उसके आने का शुक्र तक न अदा कर सकता था. ये तो कहां कि न आने का गिला जबान पर ला सकता और जबरदस्ती बुलाने की तो मजाल ही किस को थी.'
बाबरी को देख के होश न रहा
बाबर ने बाबरनामा में बाबरी से हुई अचानक मुलाकात का जिक्र करते हुए लिखा है 'इसी शेफ़्तगी (इश्क) के ज़माने में एक दिन अपने हशम-ओ-ख़दम( लाव-लश्कर) के साथ में एक गली में चला जाता था. दफ्अतन (अचानक) बाबरी से मेरा आमना सामना हो गया. मेरी अजीब हालत हुई. करीब था कि अपने आपे में मैं न रहूं. आंख उठाकर देखना या बात करना तो मुमकिन न था, बहुत छेंपता हुआ और घरबराता हुआ मैं आगे बढ़ गया.' बाबर का ये किस्सा, तुज्क-ए-बाबरी के उर्दू तर्जुमे से लिया गया है. जिसे मोहमडन प्रिंटिंग वर्क्स दिल्ली ने 1924 में छपवाया है.
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