कौन था कोहिनूर हीरे का असली मालिक? जाने क्या है इतिहास
कौन था कोहिनूर हीरे का असली मालिक? जाने क्या है इतिहास को दुनिया का सबसे कीमती हिरा माना जाता है, जिसे पाने के लिए देशों के बीच जंग तक छिड़ गई, लेकिन क्या आपको पता है कि इसका पहला मालिक कौन था.
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कोहिनूर हीरेे को लेकर अक्सर ये बात आपको सुनने में आती होगी कि इसे भारत में खोजा गया था और इंंग्लैंड ले जाकर अंंग्रेेजोंं ने इसपर कब्जा कर लिया. इतिहास में इस हीरेे के कई मालिक बताए गए हैं. जैसे अलाउद्धीन खिलजी, बाबर, अकबर, महाराजा रणजीत सिंंह.
दिलचस्प बात ये है कि इसे कभी किसी ने बचा नहींं या किसी के द्वारा इसे खरीदा नहींं गया, बल्कि वक्त-वक्त पर या तो किसी को ये तोहफे में दिया गया है या किसी जंग में जीता गया है. हालांंकि बहुत कम लोग जानते हैं कि आखिर इस हीरे का असली मालिक कौन था. आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं.
क्या है कोहिनूर का इतिहास
कोहिनूर हीरा लगभग 800 साल पहले आंध्रप्रदेश के गुंटूूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खदान में निकला था. उस समय इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना गया था. जिसका कुल वजन 186 कैरेट था. हालांकि उसके बाद से इस हीरे को कई बार तराशा गया. जिसके बाद अब इसका मूल रूप 105.6 कैरेट है. वहींं इसका कुल वजन 21.2 कैरेट रह गया है. हालांकि अब भी इसे दुनिया दुनिया का सबसे बड़े तराशे हुए हीरे का खिताब प्राप्त है. कहा जाता है ये हीरा जमीन से महज 13 फीट की गहराई में मिला था.
कौन था कोहीनूर का पहला मालिक
800 साल पुराने इस हीरे को जब गोलकुंडा की खदान से निकाला गया तो इसके पहले मालिक काकतिय राजवंश थे. कहा जाता है कि काकतिय राजवंश ने इस हीरे को अपनी कुलदेवी भद्रकाली की बांईं आंख में लगाया था. फिर 14वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने इस हीरे को काकतिय से लूट लिया. जिसके बाद पानीपत युद्ध में मुगल संस्थापक बाबर ने आगरा और दिल्ली किले को जीतकर इस हीरे को हथिया लिया था.
जब पहली बार भारत के बाहर गया कोहिनूर
इसके बाद ईरानी शासक नादिर शाह ने 1738 में मुगलों पर आक्रमण कर उन्हें हराया और 13वें मुगल बादशाह अहमद शाह से इस हीरे को छीनकर पहली बार भारत के बाहर ले गए. नादिर शाह ने मुगलों से मयूर तख्त भी छीन लिया था और माना जाता है कि नादिर शाह ने इस हीरे को मयूर तख्त में जड़वा दिया था.
कैसे नाम पड़ा कोहिनूर?
पहली बार नादिर शाह ने ही इस हीरे को नाम कोहिनूर रखा था, जिसका मतलब होता है ‘रोशनी का पहाड़’. नादिर शाह के दरबारी लेखक मोहम्मद काजिम मारवी ने इस हीरे बारे में कहा था कि अगर कोई ताकतवर आदमी चारों दिशाओं और ऊपर की ओर पत्थर फेंके और जहां-जहां पत्थर गिरे उस पूरे दायरे को सोने से भर दिया जाए तो भी इसकी कीमत कोहिनूर के बराबर नहीं होगी.
नादिर शाह की हत्या के बाद उनके पोते शाहरुख मिर्जा को कोहिनूूर मिला, जिन्होंने अफगान के शासक अहमद शाह दुर्रानी की मदद से खुश होकर उन्हें तोहफे में कोहिनूर सौंप दिया था. इस हीरे को 1813 में महाराजा रणजीत सिंह ने सूजा शाह को हथियाकर वापस भारत लाए थे. हालांकि इसके बदले रणजीत सिंंह ने सूजा शाह को 1.25 लाख रुपए भी दिए थे.
कैसे अंग्रेजों के सिर सजा कोहिनूर?
29 मार्च, 1849 को सिखों और अंग्रेजों के बीच दूसरा युद्ध हुआ. इस युद्ध में सिखों का शासन खत्म हो गया. इसके बाद महाराजा गुलाब सिंह की अन्य संपत्तियों के साथ ही कोहिनूर को भी क्वीन विक्टोरिया को सौंप दिया गया. फिर इसे 1850 में बकिंघम पैलेस में लाकर महारानी विक्टोरिया के सामने पेश किया गया और डच फर्म कोस्टर ने 38 दिनों तक इस हीरे को तराशा फिर रानी के ताज में जड़ दिया गया.
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