कोई भी योजना शुरू करने से पहले किसकी इजाजत लेती है राज्य सरकार? जान लें जवाब
चुनाव से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां जनता को लुभाने के लिए योजनाओं की घोषणा करती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन योजनाओं को लागू करने के लिए किसकी इजाजत लेनी होती है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने कमर कस लिया है. इतना ही नहीं जनता को लुभाने के लिए सभी राजनातिक पार्टियां अलग-अलग योजनाओं की घोषणा कर रही है. लेकिन सवाल ये है कि किसी भी योजना को लागू करने के लिए राज्य सरकार आखिर किससे इजाजत लेती है. जानिए नियम क्या कहता है.
राज्य की योजनाएं
सभी राज्यों की सरकार जनता के हित के लिए अलग-अलग योजनाओं को लागू करती है. हालांकि अब बीते कुछ समय से राज्य सरकार चुनाव से पहले कई योजनाओं की घोषणा कर देती है. दरअसल चुनाव से पहले अपने वोटर्स को लुभाने के लिए सरकारें योजनाओं की घोषणा करती हैं. हालांकि कई बार सरकार बनने के बाद आर्थिक तौर पर दिक्कत होने के कारण सरकार उन योजनाओं को लागू नहीं करती हैं.
सरकार योजना लागू करने के लिए किससे लेती है इजाजत
बता दें कि राज्य सरकार अक्सर चुनाव से पहले जनता को लुभाने के लिए कई तरह की योजनाओं की घोषणा करती है. लेकिन आज हम आपको ये बताएंगे कि सरकार को किसी भी योजना को अप्लाई करने के लिए किससे इजाजत लेनी होती है. जानकारी के मुताबिक सरकार किसी भी योजना को राज्य में लागू करने के लिए स्वतंत्र होती है. सिर्फ कानूनी नियमों को बदलने के लिए राज्य सरकार स्वतंत्र नहीं होती है. हालांकि किसी भी नियम को लागू करने से पहले राज्य को अपना राजस्व देखना होता है. क्योंकि अगर किसी भी योजना से राज्य का आर्थिक भंडार खाली होता है या उससे राज्य में आर्थिक दिकक्त आती है. तो उस स्थिति में सरकार उन योजनाओं को नहीं लागू करती है.
फ्री की योजनाओं से राज्य की आर्थिक स्थिति होती है खराब
बीते कुछ दशक में भारतीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है. दरअसल आपने देखा होगा कि राजनीतिक पार्टियां सरकार बनाने के लिए जनता के सामने कई तरह की फ्री योजनाओं की घोषणा करती है. कई बार इन योजनाओं के कारण देश की आर्थिक स्थिति गड़बड़ होती है और राज्य पर कर्ज बढ़ता है.
सुप्रीम कोर्ट ने जताई है योजना
सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव से पहले जनता को लुभाने और चीजों को मुफ्त बांटने और कर्ज माफी करने के प्रचलन पर चिंता जता चुकी है. सुप्रीम कोर्ट इस तरह की घोषणाओं को एक गम्भीर मुद्दा बताया है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि चुनाव आयोग और सरकार इससे पल्ला नहीं झाड़ सकते और ये नहीं कह सकते कि वे कुछ नहीं कर सकते हैं.
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