हजार या दो हजार नहीं भारत में चलता था 10 हजार का नोट, जानें ये क्यों बंद हुआ
यह बात आजादी से पहले की है. 1938 में अंग्रेजों ने दस हजार (10,000) के नोट को जारी किया था और भारतीय रिजर्व बैंक ने ही इस नोट को छापा था. यह भारतीय करेंसी के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा नोट था.

नोटबंदी का समय तो याद ही होगा. कैसे लोग एटीएम की लाइन में लगे थे. इस नोटबंदी के बाद सामने आया था 2000 का नोट. आज की युवा पीढ़ी के लिए यह सबसे बड़ा नोट था, जिसको लेकर कई तरह के दावे भी किए गए. 19 मई, 2023 को भारत सरकार ने इस नोट को बाजार से बाहर करने का फैसला किया था और धीरे-धीरे यह नोट दिखना बंद हो गया. हालांकि, हम यहां 2000 के नोट पर नहीं बल्कि इससे भी बड़े नोट पर बात करेंगे.
क्या आपको पता है कि भारत में कभी 2000 से भी बड़ा नोट चलता था. आपको जानकर हैरानी होगी कि एक समय ऐसा भी था जब भारत में 10,000 का नोट चलन में था. यह बात आजादी से पहले की है. 1938 में अंग्रेजों ने इस नोट को जारी किया था और भारतीय रिजर्व बैंक ने ही इस नोट को छापा था. यह भारतीय करेंसी के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा नोट था, जिसे बड़े कारोबारियों के लिए छापा गया था.
8 साल ही चल पाया था 10 हजार का नोट
अंग्रेजों ने बड़े लेनदेन व कारोबारियों के लिए 10000 का नोट तो छाप दिया था, लेकिन इससे कालाबाजारी और जमाखोरी बढ़ गई. इसे रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने जनवरी, 1946 इस नोट को बाजार से वापस ले लिया था. इस तरह यह नोट महज 8 साल तक ही बाजार में चलन में रहा.
एक बार फिर हुई वापसी
भारत की आजादी के बाद 10000 के नोट की बाजार में एक बार और वापसी हुई. 1954 में 10000 के साथ ही 5000 के नोट का प्रचलन भी शुरू हुआ. हालांकि, इन दोनों ही नोटों से आम जनता को कोई फायदा नहीं हुआ, उल्टा कालाबाजारी और जमाखोरी एक बार फिर बढ़ गई क्योंकि दोनों नोट का इस्तेमाल काफी कम था और बड़े कारोबारी ही इसका इस्तेमाल करते थे. ऐसे में 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार ने 10000 के साथ ही 5000 का नोट भी वापस लेने का फैसला किया.
ये आंकड़े भी देख लीजिए
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, 31 मार्च, 1976 तक कुल 7,144 करोड़ रुपये चलन में थे. इनमें 22.90 करोड़ रुपये मूल्य के 5000 रुपये के नोट और 10000 के नोट केवल 1260 नोट ही चलन में थे, जिनकी कीमत 1.26 करोड़ रुपये ही थी. ये नोट उसम समय बाजार में मौजूद मुद्रा का केवल 2 फीसदी ही था.
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