Why Toilet Paper Always White: घर हो या कोई मॉल या फिर एयरपोर्ट... यहां वॉशरूम में हमेशा एक चीज कॉमन होती है, और वो है टॉयलेट पेपर. आपने कहीं का भी वॉशरूम यूज किया हो, हर जगह आपको एक ही तरह का टॉयलेट पेपर देखने को मिला होगा. यहां तक कि उसका रंग भी एक ही होता है- सफेद. क्या कभी आपने हरा, लाल, नीला या रंग-बिरंगा टॉयलेट पेपर देखा है? शायद ही ऐसा हुआ हो. क्योंकि सभी जगह ज्यादातर सफेद रंग का ही टॉयलेट पेपर इस्तेमाल किया जाता है. अब ऐसे में सवाल यह बनता है कि ऐसा क्यों है कि सब जगह ज्यादातर सफेद रंग का ही टॉयलेट पेपर इस्तेमाल किया जाता है? दरअसल, इसके पीछे कई कारण हैं. आइए जानते हैं...
कैसे बनता है टॉयलेट पेपर?
टॉयलेट पेपर सेल्यूलोज फाइबर से बनाया जाता है. इसे सीधे पेड़ से या फिर कागजों को ही रिसाइकल करके तैयार जाता है. पहले इस फाइबर से एक पेपर तैयार किया जाता है और फिर उसे किसी डिजाइन के साथ कटिंग करके मार्केट में बेचा जाता है.
सफेद क्यों होता है टॉयलेट पेपर?
कई रिपोर्ट्स में टॉयलेट पेपर के सफेद होने के पीछे की वजहें बताई गई हैं. टॉयलेट पेपर के सफेद होने के पीछे तीन मुख्य कारण हैं. पहला कारण है कि जब इसे बनाया जाता है तो इसे ब्लीच किया जाता है. जिसकी वजह से इसका रंग सफेद हो जाता है. अगर इसको रंग देना है तो इसे डाई करनी पड़ती है. रंग चढ़ाने के लिए कंपनी का खर्चा काफी ज्यादा हो सकता है, इसलिए इसे बाजार में सफेद ही बेचा जाता है.
ऐसा नहीं है कि कंपनियां सिर्फ खर्चा बचाने के लिए ही इसे सफेद रंग का रखती है. दरअसल, कलर्ड टॉयलेट पेपर को हेल्थ के हिसाब से सही माना जाता है और डॉक्टर्स भी सफेद टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करने के की ही सलाह देते हैं. इनके अलावा सफेद पेपर इको-फ्रैंडली माना जाता है और इसे डिकम्पोज करना भी आसान होता है. कंपनियां इसे हाइड्रोजन पेरोक्साइड के साथ ब्लीच करती है, जिस वजह से यह सफेद और काफी सॉफ्ट भी होता है. यह पर्यावरण के हिसाब से भी काफी फायदेमंद रहता है.
पहले हुआ करते थे कलर्ड टॉयलेट पेपर
कई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि 50 के दशक में रंगीन टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल किया जाता था. होटल में टाइल के रंग, थीम, टॉवेल आदि के आधार पर इनका कलर डिसाइड किया जाता था. फिर धीरे-धीरे इनका चलन खत्म हुआ और अब सिर्फ व्हाइट टॉयलेट पेपर का ही इस्तेमाल किया जाता है.
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