नीली आंखों के लोग बाकी लोगों से क्यों होते हैं अलग, रिसर्च में आया सामने
दुनिया में अधिकांश लोगों की आंख भूरी और काली होती है. वहीं इसके बाद कुछ लोगों की आंख नीले और हरे रंग की भी होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नीली आंख के लोग बाकी लोगों से कितने अलग होते हैं.
दुनिया में आपने देखा होगा कि कई लोगों की आंखे काली, भूरी, हरी और नीली भी होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नीली आंखों के लोग बाकी लोगों से कितने अलग होते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि वैज्ञानिकों ने नीली आंखों वालों के ऊपर क्या रिसर्च किया है और ये बाकी लोगों से कितने अलग होते हैं.
नीली आंख
आपने देखा होगा कि काला और भूरा होने के अलावा कई लोगों की आंखे नीली भी होती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नीली आंख वाले लोग बाकी दुनिया के लोगों से कितने अलग होते हैं. एक नई स्टडी में साइंटिस्ट ने नीली आंख वाले लोगों के ऊपर रिसर्च किया है. रिसर्च में ये सामने आया है कि नीली आखों वाले दुनिया के हर इंसान का पूर्वज एक शख्स हो सकता है. कोपनहेगन विश्वविद्यालय के सेलुलर और मॉलीक्यूलर विभाग के प्रोफेसर हंस ईबर्ग की अगुआई में शोध हुआ था. इस शोध में 6 से 10 हजार साल पहले हुए एक जीन म्यूटेशन की पहचान की गई है. इस म्यूटेशन के कारण मनुष्यों में नीली आंखें उभरी है. वहीं इस जीन म्यूटेशन ने OCA2 जीन में बदलाव किया है.
क्यों होती है नीली आंख
बता दें कि OCA2 जीन में म्यूटेशन P प्रोटीन में परिवर्तन ला सकता है, जो मेलेनिन के बनने और उसके फैलने को प्रभावित कर सकता है. इससे ओकुलोक्यूटेनियस ऐल्बिनिज़म जैसी स्थितियां हो सकती हैं, जहां व्यक्तियों में मेलेनिन बहुत कम या बिलकुल नहीं बनता है. इसी वजह से बहुत गोरी त्वचा, हल्के रंग के बाल और हल्के रंग की आंखें होती हैं. वहीं OCA2 जीन सामान्य आबादी में आंखों के रंग में भिन्नता से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि जीन के विभिन्न संस्करण आईरिस में मेलेनिन की मात्रा और वितरण पर असर डालते हैं, जिसके नतीजे में आंखों का रंग अलग-अलग हो सकता है.
रिसर्च में क्या आया सामने
स्टडी में प्रोफेसर ईबर्ग ने बताया है कि यह जीन आंखों को भूरा रंग देने काबिलियत को एक स्विच की तरह बंद और चालू करता है. जिसे मेलेनिन के बनने पर असर होता है. इसी आधार पर साइंटिस्ट इस नतीजे पर पहुंचे कि सभी नीली आंखों वाले लोगों का एक ही पूर्वज होगा. लेकिन इसके लिए शोधकर्ताओं ने जॉर्डन, डेनमार्क, तुर्किये, समेत कई देशों के आंखों के रंग और उनके माइटोकॉन्ड्रियाई डीएनए की पड़ताल की है. उनका कहना है कि इसका अस्तित्व के संघर्ष से कोई लेना देना नहीं है और ना ही यह कोई अच्छा या बुरा असर बताता है. यह केवल यह बताता है कि कैसे कुदरत लगातार इंसान के जीनोम में बदलाव करती रहती है, जिससे इंसान में भी कई बदलाव देखने को मिलते हैं.
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