चौकोर ही क्यों होती हैं किताबें, गोल क्यों नहीं? जान लीजिए इसके पीछे का साइंस
Books Size: क्या आपने कभी सोचा है कि ज्यादातर किताबों का आकार चौकोर ही क्यों होता है गोल या कोई और क्यों नहीं. आखिर इसके पीछे का साइंस क्या है चलिए जानते हैं.
आप किताबें जरूर पढ़ते होंगे या आपने पढ़ी जरूर होगी. ऐसे में अक्सर मन में एक सवाल उठता है कि आखिर किताबों की लंबाई और चौड़ाई क्या सोचकर रखी जाती है या उनका साइज एक जैैसा ही क्यों होता है. तो चलिए जानते हैं कि आखिर ऐसा होता क्यों है और इसके पीछे का साइंस क्या है.
क्यों किताबों का आकार चौकोर होता है?
किताबों का खास आकार उन्हें पढ़ने में आसानी से है. दरअसल एक्सपर्ट्स की मानें तो किताबों की लंबाई और चौड़ाई का खास महत्व उनको पढ़ने में आसान बना पाने में है. बताया जाता है कि जब हम किसी किताब को पढ़ते हैं तो नजर किताब के एक कोने से दूसरे कोने तक लेकर जाते हैं. ऐसे में अगर किताबों के बीच लिखी लाइन ज्यादा लंबी रखी जाएंगी तो उनको पढ़ पाना इतना आसान नहीं होगा.
एक पन्ने पर होने चाहिए कितने शब्द?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमूमन किताब के एक पन्ने पर 45 से 75 शब्दों को पढ़ने में आसानी होती है. इन शब्दों की सीमा बनी रहे इसलिए किताबों को बनाते वक्त उनकी चौड़ाई ज्यादा नहीं रखी जाती. वहीं पुराने जमाने से किताबें सड़क के किनारेे स्टैंड्स पर रखकर बेची जाती रही हैं. ऐसे में उस समय जब किताबें ज्यादा बड़ी होती थीं तो स्टैंड्स पर रखने में काफी परेशानी आती थी, हालांकि उनकी चौड़ाई आज की किताबों की तरह ही होती थी. ऐसे में उन्हें रखने में आसानी हो इसलिए उनकी चौड़ाई और लंबाई को आज की किताबों की तरह रखा गया.
क्या है इतिहास?
किताबों के इतिहास पर नजर डालें तो पहले के जमाने में कागज की ही किताबें नहीं होती थीं. जी हां, पहले पत्थरों और मिट्टी की पट्टीयों पर लिखना शुरू किया गया. जिसके बाद प्राचीन चीन में बांस और लकड़़ी जैसी चीजों पर लिखने का काम शुरू किया गया. वहीं भारत में छाल और पत्तों पर लिखनेे के भी सुुराग मिलते हैं. इसके बाद में यूरोप में चमड़े को खींचकर उसे पतला करके उसपर लिखे जाने के भी सुराग मिलते हैं. इसके कुुछ समय बाद कागज का अविष्कार हुआ. जिसके आयत आकार पर लोग पढ़ने के काफी शौकिन हो गए.
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