'वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीक़े से, मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता'. वसीम बरेलवी साहब का ये शेर सफेद झूठ वाले मामलों पर बड़ा सटीक बैठता है. लेकिन आज हमारा सवाल किसी के सफेद झूठ पर नहीं, बल्कि ख़ुद 'सफेद झूठ' के जुमले पर है. सवाल है कि आखिर झूठ को सफेद ही क्यों जोड़ा जाता है? उसे नीला, काला, पीला या फिर लाल क्यों नहीं कहा जाता. चलिए अब इस सवाल का जवाब जानते हैं.
झूठ सफेद ही क्यों होता है?
'गज़ब बात करते हो यार, एक दम सफेद झूठ बोल रहे हो' ऐसी लाइनें आपने अपने जीवन में कई बार सुनी होंगी. लेकिन क्या कभी आपने ख़ुद से ये सवाल किया कि आखिर झूठ को सफेद ही क्यों कहा जाता है. उसे किसी और रंग के साथ क्यों नहीं जोड़ा जाता. दरअसल, इसके पीछे एक तर्क है. वो तर्क ये है कि जब आप किसी चीज के बारे में कोई ऐसा झूठ सबके सामने बोलते हैं, जिसका सच सब पहले से जानते हैं तो उसे लोग सफेद झूठ कहते हैं.
ऐसा इसलिए क्योंकि सफेद रंग पर सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है. यहां सफेद झूठ का मतलब कि साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि आप झूठ बोल रहे हैं. काले, नीले, पीले और लाल रंग का प्रयोग इसलिए नहीं करते...क्योंकि ये सभी गहरे रंग हैं और गहरे रंग की चीजों पर जल्दी कोई चीज स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देती.
अगर कोई झूठ बोले तो उसे कैसे पकड़ें?
जीवन में ऐसे कई लोग मिलेंगे जो बहुत ज्यादा झूठ बोलते हैं. चलिए आज आपको कुछ तरकीबें बता देते हैं, जिनकी मदद से आप किसी का झूठ बड़ी आसानी से पकड़ लेंगे. खासतौर से अगर कोई अपना आप से झूठ बोल रहा है तो आप उसकी इन हरकतों से तुरंत अंदाजा लगा लेंगे कि सामने वाला झूठ बोल रहा है. जैसे-
- आंखें चुराने की आदत
- सीधा जवाब देने से बचना
- वक्त निकालने या सामना करने से बचना
- डिफेंसिव बातें करना
- फोन शेयर करने से बचना
- बॉडी लैंग्वेज का बदल जाना
- जरूरी बातों को टालना
- किसी घटना के बारे में अलग-अलग जवाब देना
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