अंतरिक्ष पूरी तरह से रहस्यमयी है. अंतरिक्ष को लेकर काफी खोज की गई है और अभी काफी खोज किया जाना बाकी है. कई देश अंतरिक्ष में अलग-अलग खोज के लिए अपने एस्ट्रोनॉट भेजते हैं. वहां उन्हें पृथ्वी से काफी अलग माहौल और परिस्थितियां मिलती हैं, जिनसे उनकी हेल्थ पर असर पड़ता है. ऐसा ही एक असर उनके पांव पर पड़ता है और इसका नतीजा ये होता है कि जब कोई एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष से पृथ्वी पर आता है तो उससे चला नहीं जाता है.


जी हां, जब अंतरिक्ष यात्री धरती पर वापस आते हैं तो वो अपने कदम सही से जमीन पर नहीं रख पाते हैं. उनको दूसरे के सहारे से ले जाया जाता है और उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में काफी वक्त लग जाता है. तो जानते हैं आखिरकार ऐसा क्यों होता है...


बता दें कि अंतरिक्ष में जाने के बाद एस्ट्रोनोट यानी अंतरिक्ष यानी के शरीर में काफी बदलाव होता है. शरीर में बदलाव होने से उन्हें कई बीमारियां होने का भी संभावना रहती है. शरीर के हड्डिया और मांसपेशियां काम नहीं करने से उनमें काफी बदलाव हो जाता है. दरअसल, लंबे टाइम अंतरिक्ष में रहने से कई अंग लंबे समय तक निष्क्रिय रहते हैं और इससे शरीर में बदलाव होता है. इस वजह से धरती पर आने के बाद चलने में दिक्क्त होती है.


गुरुत्वाकर्षण भी डालता है असर


माना जाता है कि  गुरुत्वाकर्षण का भी एक प्रभाव होता है. अंतरिक्ष में कम गुरूत्वाकर्षण होने के कारण एस्ट्रोनोट अंतरिक्ष में तैरते रहते हैं. इसमें यह भी पता नहीं चलता कि कहां ऊपर है और कहां नीचे है. अंतरिक्ष में सूक्ष्म गुरुत्व का माहौल होता है यानीअंतरिक्ष यात्री पृथ्वी की तुलना में काफी कम गुरुत्व बल महसूस होता हैं. जिस वहज से वहां पर एस्ट्रोनोट हर समय भारहीनता महसूस करते हैं. जिस वजह से अंतरिक्ष यात्री हमेशा अंतरिक्ष में तैरते रहते हैं.


लेकिन वे जब पृथ्वी पर वापस आते हैं, तो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में आ जाते हैं. जिस वजह से उन्हें काफी समस्याएं झेलनी पड़ती है. उन्हें फिर से पहले जैसे होने में कुछ सप्ताह या कई महीनों तक का समय लग जाता है.


ऐसे में एस्ट्रोनोट जब पृथ्वी पर आते हैं तो उन्हें स्टॉफ द्वारा स्ट्रेचर या कुर्सी पर लेकर जाया जाता है. उसके बाद उनको मेडिकल सुविधाएं भी दी जाती है. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन चार अंतरिक्ष यात्रियों के नामों की घोषणा की, जो देश के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन गगनयान के लिए ट्रेनिंग ले रहे हैं. 


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