सभी पटाखों में होता है बारूद, सिर्फ रॉकेट ही उड़ान भरकर ऊपर क्यों जाता है? यहां जानिए
रॉकेट में भी दूसरे पटाखों की तरह बारूद होता है, लेकिन दूसरे पटाखों की तरह यह नीचे नहीं फटता. इसकी वजह रॉकेट की संरचना और उसमें बारूद भरने का तरीका है.
Diwali Rocket: दिवाली को प्रकाश का पर्व भी कहा जाता है. यह जितना रोशनी का त्योहार होता है, उतना ही पटाखों का भी होता है. दिवाली पर लोग जमकर पटाखे जलाते हैं. दिवाली पर मार्केट में तरह-तरह के पटाखे देखने को मिलते हैं. पटाखों का अपना विज्ञान है. कोई बहुत ज्यादा आवाज करता है तो कोई बहुत ज्यादा रोशनी. किसी से चमकीला चांद-सितारे बनाता प्रकाश निकलता है तो कोई लट्टू की तरह घूम-घूम कर रोशनी पैदा करता है. ऐसा ही एक 'रॉकेट' नाम से जाना जाने वाला पटाखा भी होता जो अपनी खास विशेषता के लिए प्रचलित है.
वैसे तो सभी तरह के पटाखों में बारूद का इस्तेमाल होता है, लेकिन सभी के जलने पर इसका असर अलग-अलग दिखाई देता है. बात अगर रॉकेट की करें तो इसमें आग लगते ही यह आसमान की तरफ तेज रफ्तार से आगे बढ़ता है और एक तय दूरी के बाद आसमान में फटकर रंग-बिरंगी रोशनी कर देता है. रॉकेट को देख कर आपके मन में भी कभी न कभी यह सवाल तो जरूर आया होगा कि आखिर रॉकेट में ऐसा क्या है जो यह आसमान की ओर भागता है? बाकी सभी पटाखे तो जमीन पर ही फूट जाते हैं. आइए जानते हैं रॉकेट से जुड़े विज्ञान को जिसकी वजह से रॉकेट उड़ान भरता है.
रॉकेट की संरचना
बाकी पटाखों की तरह रॉकेट में भी बारूद का ही इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसमें इसे भरने का तरीका अलग होता है. बारूद को अलग तरह से भरने और इस्तेमाल करने के कारण ही रॉकेट हवा में तेज रफ्तार के साथ उड़ता है और आसमान में जाकर ब्लास्ट होता है. रॉकेट को बनाते समय इसका सबसे ऊपरी हिस्सा नली के आकार का रखा जाता है. रॉकेट को कभी भी पूरी तरह से बारूद से नहीं भरा जाता, बल्कि इसके कुछ हिस्से में बारूद भरी जाती है और कुछ हिस्से को खाली छोड़ दिया जाता है. रॉकेट के इस खाली हिस्से के निचले भाग में बारूद भरा जाता है. यहीं से कागज की धागेनुमा संरचना, जिसे आम भाषा में बत्ती भी कहते हैं निकली होती है, इसी में आग लगाकर रॉकेट चलाया जाता है.
आसमान में ऐसे जाता है रॉकेट
रॉकेट को छोड़ने वाला जब बारूद में आग लगाता हैं तो बारूद जलना शुरू होता है. रॉकेट के खाली हिस्से में इतनी ज्यादा गर्माहट और गैस इकठ्ठा हो जाती है कि वहां बहुत अधिक मात्रा में दबाव पैदा होता है. यह दबाव रॉकेट के खाली हिस्से को ऊपर की ओर बढ़ने के लिए पर्याप्त प्रेशर बनाता है. अतः रॉकेट का ऊपरी सिरा जिस ओर होता है वह उधर की तरफ ही आगे बढ़ने लगता है. ऊपर जाने के बाद जैसे ही दबाव कम होता है, यह तेजी से विस्फोट होता है और आसमान में रंग-बिरंगी रोशनी बिखर जाती है. रॉकेट को बनाते समय बारूद में अलग-अलग तरह के केमिकल इस्तेमाल किए जाए हैं जो इसमें से निकलने वाले अलग-अलग तरह के रंगों के लिए जिम्मेदार होते हैं.
यह भी पढ़ें -
आंखें इस हद तक बाहर निकाल आएं ऐसा भी होता है क्या! इस आदमी ने कर दिखाया और बन गया विश्व रिकॉर्ड