क्या अंतरिक्ष में लगती है भूख कम, क्या है इसके पीछे का साइंस
स्पेस में जाने वाले अंतरिक्षयात्रियों को भोजन में क्या मिलता है. क्या स्पेस में जाने वाले अंतरिक्षयात्रियों को मिशन के दौरान भूख कम लगती है. जानिए भूख कम लगने के पीछे क्या साइंस है.
अंतरिक्ष को रहस्यों से भरी दुनिया कहा जाता है. कई देशों की स्पेस एजेंसी लगातार अंतरिक्ष को लेकर काम कर रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्पेस में जाने वाले अंतरिक्ष यात्री अपने साथ खाने में क्या लेकर जाते हैं. क्या स्पेस में जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को भूख कम लगती है. आज हम आपको इन सभी सवालों से जुड़े जवाब फैक्ट के साथ बताएंगे.
अंतरिक्ष
अंतरिक्ष को लेकर अमेरिका,भारत,रूस,चीन और जापान समेत कई देशों की स्पेस एजेंसी लगातार काम कर रही है. लेकिन जब से भारतीय मूल की नासा अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके साथी विमान में खराबी के कारण स्पेस में फंसे हुए है, तब से पूरी दुनिया की नजर उनके सफल वापसी की उम्मीद पर टिकी हुई है. हालांकि रिपोर्ट्स के मुताबिक सुनीता और उनके साथी जल्द ही धरती पर वापस लौट आएंगे.
सुनीता विलियम्स के स्पेस में फंसे होने के कारण सोशल मीडिया पर भी यूजर्स लगातार तरह-तरह के सवाल पूछ रहे हैं. कई यूजर्स ने पूछा है कि वहां पर उन्हें खाना कैसे मिलता होगा और उनके पास जिंदा रहने के लिए कितना खाना बचा है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सुनीता विलियम्स और उनके साथी के पास अभी खाना है. वहीं अंतरिक्ष मिशन में सुनीता अपने साथ समोसे लेकर गई हैं. लेकिन आपको जानकारी हैरानी होगी कि अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट से ज्यादा खाया नहीं जाता है. जो खाना धरती पर बहुत मन से खाया जाता है, वो अंतरिक्ष में फीका लगता है.
अंतरिक्ष यात्री को भूख क्यों नहीं लगती
एस्ट्रोनॉट को अंतरिक्ष में भूख क्यों नहीं लगती है. इसे पता करने के लिए ऑस्ट्रेलिया की RMIT यूनिवर्सिटी में रिसर्च हुई है. इसमें शोधकर्ताओं ने VR और अंतरिक्ष यान के सिम्युलेटेड माहौल का इस्तेमाल किया है. जिससे ये पता चले कि अंतरिक्ष यात्रा किसी व्यक्ति की गंध और भोजन के अनुभव पर कैसा असर करती है. रिसर्च के रिजल्ट इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी में छपे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक खाने का पूरा स्वाद लेने के लिए हमें सभी सेंस की जरूरत होती है. वहीं अंतरिक्ष यात्रियों को खाने में उतना स्वाद नहीं आता है, इसका एक संभावित कारण अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण (ग्रेवेटी) की कमी है. ग्रेवेटी के बिना, शारीरिक तरल पदार्थ पैरों की ओर नहीं खींचे जाते है, बल्कि सिर की ओर बैठ जाते हैं. जिससे बंद नाक जैसी परेशानी होती है. आपने भी यह अनुभव किया होगा कि सर्दी में जब नाक बंद होती है, तो खाने की खुशबू नहीं आती है. जिससे मनपसंद खाने में भी उतना स्वाद नहीं आता है.
स्पेस में खाना
अब सवाल है कि आखिर अंतरिक्ष यात्री स्पेस में क्या लेकर जाते हैं. बता दें कि अंतरिक्ष में जाने वाले स्पेसक्राफ्ट के हर टुकड़े के लिए वजन और मात्रा हमेशा प्राथमिक डिजाइन कारक रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अंतरिक्ष यात्री अपने लिए कितने वजन का खाना लेकर जाते हैं. अंतरिक्ष में भोजन के लिए अनुमानित वजन 1.72 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन तक सीमित होता है, जिसमें 0.45 किलोग्राम पैकेजिंग वजन भी शामिल है. अब आप सोच रहे होंगे कि खाने-पीने पर इतनी रोक क्यों है. बता दें कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अंतरिक्ष के शून्य गुरुत्वाकर्षण के लिए इसे एक विशेष प्रसंस्करण और पैकेजिंग तकनीक की आवश्यकता होती है.
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