जैन धर्म अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित है. जैन धर्म में आहार को लेकर बहुत सख्त नियम हैं. जैन धर्म के लोग जमीन के अंदर उगने वाली कई चीजें जैसे कि आलू, गाजर, शकरकंद जैसी चीजें नहीं खाते हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर ऐसा होता क्यों है? चलिए जान लेते हैं.


जैन धर्म में जमीन के अंदर उगने वाली चीजें क्यों नहीं खाते लोग?


जैन धर्म के अनुसार, जमीन के अंदर उगने वाली चीजों में अनेक सूक्ष्म जीव होते हैं. जब हम इन चीजों को खाते हैं, तो हम अनजाने में इन सूक्ष्म जीवों को मार देते हैं. जैन धर्म में किसी भी जीव को हानि पहुंचाना पाप माना जाता है. इसलिए, जैन धर्म के लोग जमीन के अंदर उगने वाली चीजों को खाकर अहिंसा के सिद्धांत का उल्लंघन मानते हैं.


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क्या है कारण?


जमीन के अंदर उगने वाली चीजों में अनेक सूक्ष्म जीव, कीड़े और छोटे-छोटे जीव रहते हैं. जैन धर्म के अनुसार, इन जीवों को मारने से हिंसा होती है. इसके अलावा जैन धर्म के अनुसार, हर जीव में आत्मा होती है और हर आत्मा मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा रखती है. जब हम जमीन के अंदर उगने वाली चीजें खाते हैं, तो हम इन जीवों के जीवन चक्र को बाधित करते हैं. जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है. अहिंसा का अर्थ है किसी भी जीव को हानि नहीं पहुंचाना. जैन धर्म के अनुसार, जमीन के अंदर उगने वाली चीजें खाकर हम इस सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं. इसके अलावा जैन धर्म में आध्यात्मिक विकास का बहुत महत्व है. अहिंसा का पालन करने से आध्यात्मिक विकास होता है.


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क्या है वैज्ञानिक दृष्टिकोण?


जैन धर्म के इस नियम के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं. कई अध्ययनों से पता चला है कि जमीन के अंदर उगने वाली कुछ चीजों में कीटनाशकों और अन्य हानिकारक रसायनों की मात्रा ज्यादा होती है. इन चीजों को खाने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.                                                        


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