हम क्यों हंसते हैं? क्या है इसके पीछे का विज्ञान
साइंटिफिक अमेरिकन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक साइकोलॉजिस्ट क्रिस्टिन जेरेट का मानना है कि इंसान किन किन चीजों पर हंस सकता है, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल या यूं कहें कि नामुमकिन है.
ये शायद दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य है. धरती पर मौजूद हर इंसान अलग अलग तरह के सिचुएशन पर हंसता है. किसी को दूसरों को गिरता देख हंसी आती है, तो कोइ खुद गिरते ही हंसने लगता है. बशर्ते उसे बहुत ज्यादा चोट ना आई हो. इसी तरह जब आप कोई ऐसी चीज देखते हैं, जिसमें आपको दिखे की सामने वाले के साथ जो हुआ वो उसकी एक अनजानी गलती की वजह से हुआ तो आप हंसने लगते हैं. कभी-कभी आप किसी जोक पर या किसी बात पर हंसते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उस बात में भी कुछ ऐसा होता है जो आपके हिसाब से गलत होता है. लेकिन इन सब के पीछे एक विज्ञान काम करता है. आज हम आपको उसी के बारे में बताएंगे.
हम क्यों हंसते हैं?
हम किसी भी चीज को अपने दिमाग तक कैसे पहुंचाते हैं. इसके तीन माध्यम होते हैं. पहला देखाना, दूसरा सुनना और तीसरा महसूस करना. ये तीनों चीजें हमारे हंसने की प्रक्रिया में अहम रोल अदा करती हैं. जैसे ही आप इन तीनों में से किसी भी एक माध्यम के जरिए कुछ ऐसा अपने दिमाग तक भेजते हैं जो आपको आनंदित करता हो... वैसे ही आपके दिमाग में एंडॉरफिंन्स (Endorphins) नाम का केमिकल बनने लगता है. ये केमिकल आपको खुशी का अहसास कराता है और इसी की वजह से आप हंसते हैं.
विज्ञान क्या कहता है
साइंटिफिक अमेरिकन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक साइकोलॉजिस्ट क्रिस्टिन जेर्रेट का मानना है कि इंसान किन किन चीजों पर हंस सकता है, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल या यूं कहें कि नामुमकिन है. दरअसल, इंसान किस बात पर हंसेगा ये उसका खुद का ह्यूमर तय करता है.
लाफिंग गैस से लोग क्यों हंसते हैं?
लाफिंग गैस या हंसाने वाली गैस का साइंटिफिक नाम नाइट्रस ऑक्साइड है. ये एक रंगहीन और गंधहीन गैस होती है. इसकी खोज वैज्ञानिक जोज़फ़ प्रीस्टली ने साल 1793 में की थी. इसके बाद ब्रिस्टल के न्यूमैटिक इंस्टिट्यूट के हम्फ़्री डेवी ने इसके कुछ प्रयोग किए और पाया कि जो लोग इसे सूंघते हैं वो हंसने लगते हैं. इसी वजह से हम्फ़्री डेवी ने ही इसका नाम लाफिंग गैस रखा.
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