आपने अक्सर उन लोगों को सैड सॉन्ग सुनते देखा होगा जो किसी दर्द से गुजर रहे होते हैं. यानी जिनका हाल फिलहाल में ब्रेकअप हुआ है. हालांकि, हर बार सिर्फ ब्रेकअप होने के बाद ही लोग सैड सॉन्ग नहीं सुनते... जब आपका मन उदास या परेशान रहता है तब भी आप और हम सैड सॉन्ग अकेले में बैठकर सुनना पसंद करते हैं. लेकिन क्या आपने सोचा है कि आखिर हम ऐसा करते क्यों हैं. हम जब उदास या परेशान रहते हैं तो हमारा दिमाग क्यों कहता है कि हमें सैड सॉन्ग सुनना चाहिए. इस पर देश के प्रतिष्ठित और लोकप्रिय संस्थान आईआईटी ने रिसर्च किया है, आज हम आपको उसी रिसर्च के बारे में बताते हैं.
कहां हुआ रिसर्च
आईआईटी मंडी ने इसे लेकर 20 लोगों पर एक रिसर्च किया. इस रिसर्च के दौरान उनकी दिमागी परिस्थितियों और उनके दिमाग में चल रही एक्टिविटी को मापने के लिए शोधार्थियों ने इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राफी का उपयोग किया. सबसे बड़ी बात कि इन सभी 20 लोगों की किसी भी तरह की म्यूजिकल ट्रेनिंग नहीं हुई थी. ऐसे लोगों को इसलिए चुना गया ताकि वह किसी भी म्यूजिक के बजने के बाद पहले से सोचा समझा रिएक्शन न दे पाएं.
क्या निकल कर आया रिजल्ट
इस रिसर्च में इन 20 लोगों को 3 तरह के गाने सुनाए गए. शोधार्थियों ने पाया कि जब इन 20 लोगों को सैड सॉन्ग सुनाया गया तो इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राफी में इनके ब्रेन के अंदर ज्यादा एक्टिविटी दर्ज की गई. इन तीन गीतों में एक भारतीय शास्त्रीय राग मिश्रा जोगिया भी था. इस संगीत का चयन पांच संगीत विशेषज्ञों के पैनल द्वारा किया गया था. आपको बता दें जब इन लोगों को अपने भीतर के दुखद अनुभव को याद करने को कहा गया तो इनके दिमाग में गामा किरणों की एक्टिविटी तेज हो गई. वहीं जब इन लोगों को सैड सॉन्ग सुनाया गया तो इनके दिमाग के अंदर अल्फा किरणों की एक्टिविटी बढ़ गई.
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