बृहस्पति पृथ्वी के सबसे तेज गति से घूमने वाले ग्रहों में से एक है, जिसका एक दिन पृथ्वी के महज 10 घंटों के बराबर होता है. जबकि परिधि में ये पृथ्वी से 11 गुना बड़ा है. वहीं पृथ्वी धीमी गति से सूर्य का चक्कर लगाती है, लेकिन सवाल ये उठता है कि सौरमंडल में मौजूद दोनों ग्रहों की स्पिन में इतना अंतर कैसे? और बृहस्पति इतनी तेज गति से आखिर घूमता कैसे है? चलिए जान लेते हैं.
कैसे जूपिटर बहुत तेज स्पिन करता है?
इसका कारण ग्रह का द्रव्यमान है. दरअसल जैसे-जैसे ग्रह नवजात सूर्य के चारों ओर की सामग्री की डिस्क से संघनित होते गए, उन्होंने स्वाभाविक रूप से कोणीय गति को संरक्षित किया. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जिस तरह एक आइस स्केटर अपनी भुजाओं को अपने शरीर की ओर खींचकर तेजी से घूमता है, उसी प्रकार एक प्रोटो-ग्रह गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के चलते सिकुड़कर तेजी से घूमता है.
बता दें सभी गैसीय ग्रहों का द्रव्यमान ज्यादा होता है, यही वजह है कि उनकी घूर्णन दर भी तीव्र होती है, बृहस्पति सबसे बड़ा ग्रह है, यही वजह है कि ये सबसे तेज भी है.
यह वह क्षेत्र है जहां हाइड्रोजन और हीलियम जैसी प्रमुख गैसें अत्यधिक दबाव में विदेशी तरल अवस्था में परिवर्तित होने लगती हैं और सतह पर दिखाई देने वाली पूर्व-पश्चिम गति के विपरीत, पदार्थ का पूरा आंतरिक द्रव्यमान एक समान तरीके से घूमता हुआ दिखाई देता है जिसे देखकर ऐसा लगता है कि ये कोई ठोस पिंड है. इसी पिंड के अंदर बृहस्पति का विशाल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है.
बृहस्तपति पर चट्टाने हैं?
हालांकि बृहस्पति ग्रह पर चट्टानी कोर है या नहीं, इस पर अभी भी कोई निर्णय नहीं हुआ है. ये एक बड़ा सवाल था जिसकी रिसर्च के लिए अमेरिकी रिसर्च एजेंसी को भी भेजा गया था. जिसकी प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि ऐसा हो सकता है, लेकिन इसे आसानी से समझा नहीं जा सकता. बीबीसी से हुई बातचीत में फ्रांसीसी वैज्ञानिक का कहना है कि यह काफी फैला हुआ हो सकता है, पतला या फिर आंशिक रूप से आंतरिक भाग के साथ मिला हुआ भी हो सकता है.
बृहस्पति के बादलों की मोटाई लगभग 30 मील (50 किमी) मानी जाती है. इसके नीचे हाइड्रोजन और हीलियम की 13,000 मील (21,000 किमी) मोटी परत है जो गहराई और दबाव बढ़ने के बाद गैस से तरल में बदल जाती है.
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