सर्दियों के मौसम में हर साल घने कोहरे की वजह से ढेरों फ्लाइट्स कैंसिल कर दी जाती हैं. वर्तमान में उत्तर भारत घने कोहरे की चपेट में है. इसकी वजह से घरेलू से लेकर अंतरराष्ट्रीय उड़ानें कैंसिल की जा रहीं या उनके समय में फेरबदल किया जा रहा है. घने कोहरे के कारण पैदा होने वाली लो विजिबिलिटी सबसे अनुभवी पायलटों के लिए भी चुनौतीपूर्ण होती है और जो पायलट इतने कुशल नहीं हैं, उनके लिए तो यह स्थिति बेहद खतरनाक होती है.


टाक्सिंग कराना चुनौतीपूर्ण होता


घने कोहरे की वजह से फ्लाइट के कैंसिल होने का फैसला यात्रियों की सुरक्षा के लिए लिया जाता है. असल में, कोहरा उड़ान में परेशानी के साथ-साथ हवाई अड्डे के ऑपरेशंस को भी बहुत ज्यादा प्रभावित करता है. इसकी वजह से संचार स्थापित करने में परेशानी आती है. विशेषज्ञों का कहना है कि कोहरे के दौरान सबसे बड़ी परेशानी टेक ऑफ या लैंडिंग नहीं बल्कि फ्लाइट का रनवे पर टाक्सिंग (जब प्लेन रनवे पर चलता है) कराना होता है. 


न्यूनतम दृश्यता के मानक पूरे करने पर ही उड़ान की मंजूरी


विमान जब सफलतापूर्वक रनवे पर उतरता है तो उसे फिर से दृश्यता का मूल्यांकन करना जरूरी होता है. हर तरह के विमान और हवाई अड्डे के आसपास उड़ान भरने के लिए न्यूनतम दृश्यता की जरूरत होती है, जो रनवे के सभी बिंदुओं पर भिन्न-भिन्न हो सकती है. जब विमान न्यूनतम दृश्यता के सभी मानकों को पूरा करता, तब उसे उड़ान भरने की स्वीकृति दी जाती है. इसके बाद भी जब तक एक विमान हवा में निश्चित दूरी तय ना कर ले, तब तक दूसरे विमान को होल्डिंग प्वाइंट पर नहीं लाया जाता है. 


न्यूनतम विजिबिलिटी 550 मीटर होती


कम दृश्यता प्रक्रियाओं (एलवीपी) के दौरान फ्लाइट की लैंडिंग भी चुनौतीपूर्ण होती है. मानकों के अनुसार, लैंडिंग के लिए जरूरी न्यूनतम विजिबिलिटी 550 मीटर होती है. इस कारण पायलट को लैंडिंग के लिए ऑटो पायलट का सहारा लेना पड़ता है. वर्तमान में दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई शहरों में विजिबिलिटी 100 से भी कम है. जिन एयरपोर्ट पर घने कोहरे की वजह से कम दृश्यता होती है, वहां फ्लाइट उतरने के लिए इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (आईएलएस) की जरूरत पड़ती, ताकि विमान से संचार स्थापित किया जा सके. 




ये भी पढ़ें - इस देश में पक्षियों का भी बनता है पासपोर्ट, फ्लाइट में टिकट भी होती है बुक