Indian Railway: आपने हेडलाइन में पढ़ा कि रेलवे की ओर से रेलवे ट्रेक पर ब्लास्ट किया जाता है. आप भी सोच रहे होंगे कि रेलवे की ओर से ऐसा क्यों किया जाता है और ऐसा करने के पीछे क्या वजह हो सकती है? साथ ही आपके मन में ये भी सवाल आ रहा होगा कि आखिर रेलवे ब्लास्ट करके क्यों अपनी ही संपत्ति को ही नुकसान पहुंचाएगा? रेलवे ट्रेक पर विस्फोट कैसे किया जाता है और विस्फोट का क्या कारण होता है? आज हम आपको बताते हैं कि रेलवे ट्रेक पर किए जाने वाले विस्फोट के पीछे क्या वजह होती है और यह कैसे किया जाता है.
बता दें कि यह विस्फोट आम बम ब्लास्ट की तरह नहीं होता है. ये सिर्फ माइंस ब्लास्ट होता है, जिससे सिर्फ आवाज ही निकलती है. जब भी रेलवे ट्रेक पर ये ब्लास्ट होता है तो रेलवे ट्रेक को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और बिना नुकसान पहुंचाए ही ये ब्लास्ट होता है.
कैसे होता है ब्लास्ट?
बता दें कि ये ब्लास्ट डेटोनेटर के जरिए किया जाता है और ये ब्लास्ट लोको पायलट की मदद के लिए ही किए जाते हैं. ब्लास्ट सुनकर आपके दिमाग में दुर्घटना जैसा कुछ आ रहा होगा, लेकिन इससे कोई दुर्घटना नहीं होती है, बल्कि ट्रेन को दुर्घटना से बचाया जाता है. बता दें कि डेटोनेटर एक तरह के विस्फोटक होते हैं और इन्हें ट्रेन के लिए इस्तेमाल होने वाली माइंस भी कही जाती है. यह एक बटन की तरह होते हैं, जिन्हें पटरियों पर लगाया जाता है. जब ट्रेन इन पर से गुजरती है तो इससे आवाज होती है मगर इससे कोई और नुकसान नहीं होता, सिर्फ आवाज ही होती है. रेलवे यात्रियों की सुरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल करता है.
कब किया जाता है इस्तेमाल?
अब आपको बताते हैं कि ये विस्फोट सर्दी के समय ज्यादा क्यों किए जाते हैं. इसकी वजह ये होती है कि जब भी कोई स्टेशन आता है तो उससे पहले ये लगा दिए जाते हैं और जैसे ही ट्रेन इनसे गुजरती है तो आवाज से लोकोपायलट समझ जाते हैं कि कोई स्टेशन आने वाला है. वैसे कोहरे की स्थिति में कई बार स्टेशन का पता नहीं चल पाता है. ऐसे में इन विस्फोट के जरिए लोको पायलट को जानकारी दी जाती है. इसके साथ ही कई बार रेलवे ट्रेक पर कोई दिक्कत होने पर भी पहले ही ये लगा दिए जाते हैं, जिससे लोको पायलट समझ जाता है कि कोई दिक्कत है और वो ट्रेन की स्पीड धीरे कर लेता है या ट्रेन रोक देता है.
जैसे रेलवे कर्मचारियों को रेलवे ट्रैक की दिक्कत पता चलती है तो ट्रेन को रोकना जरूरी हो जाता है. ऐसे में डेटोनेटर का इस्तेमाल किया जाता है और खराब ट्रैक से कुछ मीटर पहले ही इसे लगा दिया जाता है. इस तरह ट्रेन को एक्सीडेंट से बचाया जाता है.
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