(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
21 तोपों की सलामी में क्या सही में 21 तोपें लाई जाती है या फिर इसके नियम कुछ और हैं...जान लीजिए
देश में 21 तोपों की सलामी की कहानी 150 साल से भी पुरानी है. आज के साम्य में सलामी के लिए 7 तोपें इस्तेमाल की जाती हैं, हर तोप से 3 गोले फायर किए जाते हैं. आइए जानते हैं ये परंपरा कैसे शुरू हुई.
21 Gun Salute Story: आपने देखा होगा कि गणतंत्र दिवस (Republic Day), स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) या किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को सम्मान देने के लिए 21 तोपों की सलामी दी जाती है. यह परंपरा बहुत सम्मानजनक मानी जाती है, लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि ऐसे अवसरों पर सम्मान में 21 तोपों की सलामी ही क्यों दी जाती है? अगर नहीं, तो आज हम आपको इस परंपरा के पीछे की कहानी बताने वाले हैं. आइए जानते हैं यह क्यों और कब से शुरू हुई...
21 तोपों की सलामी का इतिहास
देश में 21 तोपों की सलामी की कहानी 150 साल से भी पुरानी है. इस प्रक्रिया से उस दौर में औपनिवेशिक शक्ति की भव्यता और रौब का प्रदर्शन किया जाता था. अंग्रेजों के दौर में दिल्ली में 1877, 1903 और 1911 में भव्यता के ये 3 बेधड़क प्रदर्शन आयोजित किए गए थे.
वायसराय लॉर्ड लिटन ने साल 1877 में दिल्ली में पहला दरबार आयोजित किया था, जिसे अब कोरोनेशन पार्क कहते हैं. इसमें क्वीन विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित करने के लिए भारत के महाराजाओं और राजकुमारों को एक उद्घोषणा पढ़कर बुलाया गया था. दूसरे दरबार में इंग्लैंड एक नए सम्राट की ताजपोशी की गई थी. तीसरा दरबार साल 1911 में आयोजित हुआ, जो किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी की वजह से खास था. इनके सम्मान में 50 हजार ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों ने परेड की थी.
इस आधार पर तय हुए सलामी के मानक
असल में साल 1877 तक तोपों की सलामी के लिए मानक तय नहीं थे. इसी साल लगे दरबार के दौरान लंदन में सरकार की सलाह पर वायसराय ने एक नया आदेश जारी किया, जिसके तहत ब्रिटिश सम्राट के लिए बंदूक की 101 और भारत के वायसराय के लिए 31 सलामी तय की गई. इसके साथ ही ब्रिटिश राज के साथ भारतीय राजाओं के संबंधों के आधार पर उन्हें 21, 19, 17, 15, 11 और 9 बंदूक सलामी देने का पदानुक्रम तय किया गया था.
आजादी के बाद भारत में 21 तोपों की सलामी
आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति का पदभार संभाला. वह घोड़ा गाड़ी में सवार होकर राष्ट्रपति भवन से इरविन एम्फीथिएटर (मेजर ध्यानचंद स्टेडियम) देश के राष्ट्रपति को दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी लेने आए थे. तब से ही 21 तोपों की सलामी का अंतरराष्ट्रीय मानदंड बन गया. साल 1971 के बाद से 21 तोपों को सलामी, राष्ट्रपति और अतिथि राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान बन गई. इसके अलावा, नए राष्ट्रपति की शपथ के दौरान और कुछ खास चुनिंदा अवसरों पर भी यह सलामी दी जाती है.
माना जाता है देश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान
अब जो सलामी दी जाती है उसमें गोले तो 21 होते हैं, लेकिन तोपें सिर्फ 8 होती हैं, जिसमें से सलामी के लिए 7 तोपें इस्तेमाल की जाती हैं, हर तोप से 3 गोले फायर किए जाते हैं. सलामी देने के तकरीबन 122 जवानों का एक दस्ता होता है, जिसका हेडक्वार्टर मेरठ में है. ये भारतीय सेना की स्थाई रेजीमेंट नहीं होती है.
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