मंकीपॉक्स यानी एमपॉक्स वायरस का तेजी के साथ पूरी दुनिया में फैल रहा है. अपने देश भारत में भी इसको लेकर अलर्ट जारी कर दिया गया है. वहीं इससे निपटने के लिए भी केंद्र सरकार ने हेल्थ एक्सपर्ट के साथ उच्चस्तरीय बैठक की है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा हि मंकीपॉक्स या इस तरह की बीमारियों के अंत में पॉक्स शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जाता है. आज हम आपको इसके पीछे की वजह बताएंगे. 


मंकी पॉक्स



मंकी पॉक्स का प्रकोप पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहा है. इसकी तैयारियों की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय बैठक हो चुकी है, जिसके बाद से निगरानी बढ़ा दी गई. जानकारी के मुताबिक एमपॉक्स जो अभी का वायरस है वो ज्यादा वायलेंट है और ये तेजी से फैलता है. इसके अलावा देश में एयरपोर्ट्स और अस्पतालों को अलर्ट किया गया है. 


क्या है इलाज


जानकारी के मुताबिक इसका कोई स्पेसिफिक ट्रीटमेंट नहीं है. लेकिन कहा जा रहा है कि जिन लोगों को स्मालपॉक्स की वैक्सीन लगी है, उनपर इसका असर नहीं होगा. इसके लिए  दिल्ली के सफदरजंग, राम मनोहर लोहिया और लेडी हार्डिंग को नोडल हॉस्पिटल बनाया गया है.


क्यों होता है पॉक्स शब्द का इस्तेमाल


पॉक्स को हम चेचक भी कहते हैं. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में चेचक को लेकर माता जी का आना भी कहा जाता है, हालांकि चिकित्सा विज्ञान का इस पर अलग मत है. शरीर में पॉक्स का मतलब शरीर पर छोटी-बड़ी फुंसी का होना है. इसे मृदा सड़न भी कहा जाता है. इसलिए शरीर के किसी भी वायरस के कारण अगर फुंसी और गड्डे नुमा जैसी बीमारी होती है, तो उसे पॉक्स से जोड़कर देखा जाता है. यही कारण है कि इस तरह के वायरस के नामों पॉक्स शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.  


डब्ल्यूएचओ ने घोषित की हेल्थ इमरजेंसी


विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अफ्रीका के कई हिस्सों में मंकीपॉक्स तेजी से फैलने के बाद इसके प्रसार को देखते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (पीएचईआईसी) घोषित किया है. डब्ल्यूएचओ के पहले के बयान के मुताबिक 2022 से वैश्विक स्तर पर 116 देशों में एमपॉक्स के कारण 99,176 मामले और 208 मौतें दर्ज की गई हैं. वहीं पिछले साल रिपोर्ट किए गए मामलों में काफी इजाफा हुआ और इस साल अब तक दर्ज मामलों की संख्या पिछले साल की कुल संख्या से अधिक हो गई है, जिसमें 15,600 से अधिक मामले और 537 मौतें शामिल हैं.


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