'पुष्पा' क्यों करता है लाल चंदन की तस्करी? जानें ये लकड़ी क्यों है इतनी महंगी
पुष्पा फिल्म के पार्ट 2 को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया है. पुष्पा 1 की तरह दूसरे पार्ट में लाल चंदन की तस्करी पर फिल्म केंद्रित है. क्या आप जानते हैं कि लाल चंदन की लकड़ी इतनी महंगी क्यों होती है.
अभिनेता अल्लू अर्जुन की फिल्म पुष्पा-2 को दर्शकों ने पुष्पा-1 की तरह ही खूब प्यार दिया है. लेकिन इन दोनों पार्ट में आपने देखा होगा कि इसमें जो कॉमन है, वो शेषाचलम के जंगल और लाल चंदन की तस्करी है. लेकिन क्या आपन कभी सोचा है कि फिल्म में हमेशा लाल चंदन की तस्करी ही क्यों होती है और ये इतना मंहगा क्यों होता है. आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे.
पुष्षा फिल्म में लाल चंदन की तस्करी
बता दें कि अभिनेता अल्लू अर्जुन की पुष्पा-1 हो या पुष्पा-2 द रूल दोनों पार्टी में बैकग्राउंड की स्टोरी अरबों की कीमत वाले लाल चंदन की तस्करी पर टिकी हुई है. बता दें कि यह वो लाल चंदन है, जो महंगा होने के साथ अपनी कई खूबियों के लिए भी जाना जाता है. बता दें कि शेषाचलम के जंगल आंध्र प्रदेश के तिरुपति और कडप्पा की पहाड़ियों पर फैले हुए हैं. यहां से मिलने वाले लाल चंदन को रक्त चंदन भी कहते हैं. इसकी एक खास बात यह भी है कि शैव और शाक्त समुदाय के लोग पूजा के लिए लाल चंदन का इस्तेमाल करते हैं.
लाल चंदन क्यों होता है महंगा
बता दें कि लाल चंदन को दुर्लभ चंदनों में गिना जाता है, यही भी एक वजह है कि इसका रेट काफी महंगा होता है. महंगा होने के कारण तस्करों की नजर भी इस पर रहती है. बता दें कि आंध्र प्रदेश में लाल चंदन की लकड़ी की कटाई पर बैन है. इतना ही नहीं इसे राज्य से बाहर लेकर जाना गैर-कानूनी है. तस्करी के कारण ही पिछले कुछ सालों में लाल चंदन के पेड़ों की संख्या करीब 50 फीसदी तक घट चुकी है.
चीन तक जाता था लाल चंदन
इंडिया टुडे मैगजीन की एक रिपोर्ट के मुताबिक पहले तस्करों को लाल चंदन से करीब 1200 फीसदी का फायदा मिलता था. यही कारण है कि वो जान को खतरे में डालकर हर साल करीब 2 हजार टन लाल चंदन चेन्नई, मुंबई, तुतीकोरिन ओर कोलकाता के पोर्ट और नेपाल के जरिए चीन में पहुंचाते थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक 2016-2020 के दौरान भारत से लगभग 20,000 टन लाल चंदन की तस्करी की गई है.
लाल चंदन क्यों होता है महंगा
दरअसल लाल चंदन एक दुर्लभ प्रजाति का चंदन है. जिसके पेड़ खासतौर पर आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में पाए जाते हैं. लाल चंदन का इस्तेमाल उच्च श्रेणी के फर्नीचर, नक्काशी और सजावटी वस्तुओं को बनाने में किया जाता है. इतना ही नहीं लाल चंदन को पारंपरिक चिकित्सा में सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है. इसका इलाज गठिया और स्किन से जुड़े इंफेक्शन में किया जाता है. इसकी एंटीसेप्टिक खूबियां घावों को भरने में मदद करती हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक लाल चंदन की औसत कीमत करीब 50 हजार से 1 लाख रुपए प्रति किलो के बीच होती है, क्वालिटी अच्छी होने पर इसकी कीमत 2 लाख रुपये किलो तक भी पहुंचती है.