आप पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करें या फिर घर के बाथरूम का...ज्यादातर आपको वहां सफेद रंग का ही कमोड या फिर बेसिन देखने को मिलता है. लेकिन ऐसा क्यों होता है. लोग रंग बिरंगे कमोड का इस्तेमाल क्यों नहीं करते हैं. बेसिन आपको भले ही रंग बिरंगा मिल जाएगा, लेकिन कमोड ज्यादातर आपको सफेद ही देखने को मिलेगा. अगर आपको लगता है कि इसके पीछे सिर्फ सफाई एक वजह है तो आप गलत हैं. चलिए आपको बताते हैं ऐसा क्यों होता है और इसके पीछे की साइंस क्या है. इसके साथ ही आपको ये भी बताएंगे कि रंग बिरंगा बेसिन लेना सही होता है या फिर सफेद बेसिन ज्यादा अच्छा होता है.


कमोड क्यों होता है सफेद?


कुछ लोगों को लगता है कि टॉयलेट में लगा कमोड इसलिए सफेद होता है क्योंकि उस पर गंदगी तुरंत दिख जाएगी और उसकी सफाई हो जाएगी, जिससे हाइजीन मेंटेन रहेगा. कुछ लोग ये भी मानते हैं कि सफेद स्वक्षता का रंग है और सफेद हमेशा अच्छा दिखता है इसलिए कमोड को सफेद रंग का बनाया जाता है. हालांकि, ऐसा नहीं है. दरअसल कमोड जिस मटेरियल से बनता है उसे सिरेमिक या फिर पोर्सिलेन कहते हैं. इसका रंग बिल्कुल सफेद होता है. इसलिए कमोड को ज्यादातर सफेद रंग का बनाया जाता है. हालांकि, कुछ कंपनियां कमोड को पिंक, यलो, नीले और हरे रंग में भी बनाती हैं...लेकिन बाजार में उनकी मांग बेहद कम है और उन्हें बनाने के लिए सिरेमिक में रंग मिलाया जाता है जो उनकी क्वालिटी को लो कर देता है. इसलिए लोग ज्यादातर सफेद कमोड ही अपने बाथरूम में लगाना पसंद करते हैं.


अब समझिए सिरेमिक या पोर्सिलेन होता क्या है?


सिरेमिक या पोर्सिलेन जिसे आप आसान भाषा में चीनी मिट्टी के नाम से जानते हैं, यह एक ऐसा पदार्थ होता है जिसे विशेष प्रकार की मिट्टी से बनाया जाता है. सिरेमिक या पोर्सिलेन को उच्च क्वालिटी का विद्युतरोधी पदार्थ भी माना जाता है. इसका प्रयोग ज्यादातर बिजली के कामों मे विद्युतरोधी पदार्थों के रूप में किया जाता है. वहीं इसका प्रयोग टाइल्स, कमोड और बर्तन बनाने के लिए भी किया जाता है. आपको बता दें सिरेमिक या पोर्सिलेन का निर्माण सिलिका, एलुमिना, मैग्नीशिया, बोरान ऑक्साइड और ज़र्कोनियम इत्यादि के मिश्रण से तैयार किया जाता है.


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