Wedding Ring Finger Fact: आजकल भारत में इंगेजमेंट सेरेमनी काफी आम बात हो गई है. आपने देखा होगा कि कपल जब एक दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं तो हाथ की चौथी उंगली यानी अनामिका में पहनाते हैं. सगाई हो या शादी या फिर प्यार का इज़हार, लोग ज्यादातर बाएं हाथ की चौथी अंगुली में ही अंगूठी पहनाते हैं. लेकिन, इसकी वजह क्या है? क्यों अंगूठी को इसी अंगुली में पहनाया जाता है? भारत सहित विदेश में भी वेडिंग रिंग इसी अंगुली में पहनी जाती है. आइए आज इसके पीछे की वजह जानते हैं...


लोगों का क्या मानना है?
इंसाइडर वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार करीब 6,000 साल पहले प्राचीन मिस्र में अंगूठी पहनाने की शुरुआत हुई. तब अंगूठी पहनाने को लेकर काफी अफवाहें थीं, जो आज भी चल रही हैं. तब मिस्र के लोगों का मानना था कि इंसान की अनामिका उंगली से लवर्स वेन नाम की एक नस सीधे दिल तक जाती है. कहने का मतलब है कि उनका मानना था कि इस उंगली के तार सीधे दिल से जुड़े होते हैं. तब शायद उन्हें यह मालूम नहीं था कि हाथ की सारी ही उंगलियां दिल से जुड़ी हुई हैं. इसी वजह से लोगों ने इस उंगली में अंगूठी पहनना शुरू किया था.


कई धर्मों में अलग हैं रिवाज
ईसाई धर्म के अलावा कई ऐसे धर्म भी हैं, जिनमें अंगूठी पहनना जरूरी नहीं और अगर है भी तो उसे चौथी उंगली में ही पहनना अनिवार्य नहीं है. जैसे यहूदियों में शादी की रस्में हो जाने के बाद अंगूठी को दूसरी उंगली में शिफ्ट किया जा सकता है और रस्म के वक्त तर्जनी उंगली में अंगूठी पहनी जाती है. इस्लाम या सनातम धर्म में भी अनिवार्य रूप से अंगूठी पहनने की परंपरा नहीं है. हालांकि, भारत तेजी से बाहरी देशों की परंपरा को अपना रहा है और लोग शादी से पहले रिंग सेरेमनी भी करने लगे हैं.


अंगूठी को चौथी उंगली में पहनने की परंपरा
वैसे तो वेडिंग रिंग पहनाने का रिवाज और उसे अनामिका उंगली में पहनने की शुरुआत भी मिस्र के लोगों ने ही की थी. लेकिन, अंगूठी को कौन-से हाथ की उंगली में पहनना है इसपर बहस करीब 450 साल पहले ब्रिटेन में शुरू हुई थी. साल 1549 में एंगलिकन चर्च ने खुद को कैथोलिक चर्च और उनकी मान्यताओं से अलग किया. साथ ही उन्होंने उनके तौर-तरीकों को भी बदला. जहां कौथोलिक चर्च के अनुसार, अंगूठी को दाएं हाथ की चौथी उंगली पर पहनना चाहिए, वहीं एंगलिकन चर्च ने उसे बाएं हाथ की चौथी उंगली में पहनने की शुरुआत की और धीरे-धीरे ये प्रथा प्रचलित हो गई.


यह भी पढ़ें -


इस जगह है 'नर्क का दरवाजा'... यहां जाने वाला जिंदा वापस लौटकर नहीं आता