Train On Outer: कभी-कभी ऐसा होता है कि ट्रेन जैसे ही स्टेशन पर पहुंचने वाली होती है, वैसे ही उसे आउटर पर रोक दिया जाता है. कभी-कभी तो ट्रेन को यहां एक, दो घंटे या उससे ज्यादा समय तक भी खड़ा रखा जाता है. कई बार यात्री इससे इतना परेशान हो जाते हैं कि वो ड्राइवर से ही बहस करने लग जाते हैं. लेकिन, उन्हे शायद इस बात की जानकारी नहीं होती हैं कि ट्रेन को आउटर पर रोकने का जिम्मेदार ड्राइवर नहीं होता है.  


सबसे पहले तो यह जान लेना जरूरी है कि ट्रेन का ड्राइवर अपनी मर्जी से ट्रेन को नहीं चला सकता है, अगर सिग्नल लाल है तो ड्राइवर ट्रेन को आगे नहीं बढ़ा सकता है. आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आखिर ट्रेन को स्टेशन आने से पहले ही आउटर पर क्यों रोका जाता है... 


आउटर पर निश्चित होते हैं प्लेटफार्म 


भारतीय रेल दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क हैं. तकरीबन 68 हजार किलोमीटर के इस विशाल नेटवर्क में रोजाना सैंकड़ों ट्रेनें संचालित होती हैं. जिसमें कई तरह की ट्रेनें होती हैं. कुछ ट्रेनें छोटी होती है तो कुछ बड़ी होती हैं. कहने का मतलब है कि कुछ ट्रेनों में डिब्बे कम होते हैं और कुछ ज्यादा होते हैं. हालांकि, लम्बी दूरी के लिए चलने वाली ट्रेनों में ज्यादा डिब्बे होते हैं. इसी वजह से इन ट्रेनों के प्लेटफार्म भी निश्चित होते हैं, क्योंकि जरूरी नहीं कि सभी प्लेटफार्म की लम्बाई बराबर हो.


ट्रेनों के लेट होने से बढ़ती है ये समस्या


ट्रैक की कमी और ट्रेनों की बढ़ती संख्याओं की वजह से ज्यादातर ट्रेनें अपने तय समय से लेट हो जाती हैं. मान लीजिये दो ट्रेनों का प्लेटफार्म नंबर 1 है और उनमें से कोई एक ट्रेन अपने तय समय से लेट हैं. अगर दोनों ट्रेनों को एक ही प्लेटफार्म पर लेना है तो उनमें से किसी एक को आउटर पर रोकना पड़ता है. हालांकि, प्रयास यह रहता है कि जो ट्रेन समय पर चल रही है उसे प्राथमिकता देते हुए प्लेटफार्म पर ले लिया जाये या फिर खास ट्रेनों को पहले प्राथमिकता दी जाती है.


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