Parliament Members Wear Headphones: संसद में हेडफोन लगाकर रखते हैं तमाम सांसद, इनमें क्या-क्या सुनाई देता है?
Parliament Members Wear Headphones: संसद में कार्रवाही के दौरान सांसद को हेडफोन पहने देखा होगा. आखिर वो लोग ऐसा क्यों करते हैं. क्या उसमें वो गाने सुनते हैं, अगर नहीं तो फिर उन हेडफोन में क्या सुनाई देता है.

Parliament Members Wear Headphones: हमारे देश में तमाम तरह की भाषाएं बोली, पढ़ी और सुनी जाती हैं. हर किसी को अपनी भाषा बोलने का हक है और उस पर कोई दबाव नहीं है कि वो किसी और की भाषा को जबरदस्ती सुने. जनगणना की मानें तो भारत में दस हजार या उससे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली 121 अलग-अलग भाषाएं हैं. जनगणना की मानें ते हमारे देश में 19,500 से ज्यादा भाषाएं मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं. लेकिन जब सदन की कार्रवाही होती है तो उसमें तो हर राज्य से सांसद होते हैं. ऐसे में वो कौन सी भाषा बोलते हैं और उनके द्वारा बोली गई भाषा हर किसी को कैसे समझ में आती है.
क्षेत्रीय भाषा में बात कर सकते हैं सांसद
आपने सदन की कार्रवाही के वक्त देखा होगा कि हमारे सांसद हेडफोन लगाकर बैठते हैं और ज्यादा शोर होने पर हेडफोन लगाकर ही अपनी बात रखते हैं. आखिर वो हेडफोन क्यों लगाते हैं. इसका संसद में क्या काम है. दरअसल अपने यहां सदन की कार्रवाही मुख्य रूप से इंग्लिश और हिंदी में होती है. ऐसे में अगर कोई सांसद हिंदी और इंग्लिश बोलने में सहज नहीं है, तो वो अपनी क्षेत्रीय भाषा में अपनी बात रख सकता है. इसके बाद सवाल ये उठता है कि आखिर सांसद अगर अपनी भाषा में बोलेंगे तो बाकी लोगों को फिर वो कैसे समझ आएगी.
संसद में हेडफोन से क्या सुनते हैं सांसद
असल में सभी सांसदों को इसी के लिए हेडफोन दिए जाते हैं, जो कि उनकी भाषा को किसी और समझने में आसानी होती है. आपने देखा होगा जब कोई सांसद स्पीच देता है तो बाकी के लोग हेडफोन पहन लेते हैं. दरअसल जब कोई सांसद अपनी भाषा में बोलता है तो ट्रांसलेटर उसकी बात को अन्य भाषाओं में ट्रांसलेट करके हेडफोन के जरिए सुनते हैं. इसी के चलते सभी सांसद अन्य भाषाओं में अनुवाद करके बहस और स्पीच को अच्छे से समझ पाते हैं और संसद में अपनी राय रख पाते हैं.
कब शुरू हुई थी ये प्रणाली
संविधान के अनुच्छेद 120 के तहत संसद के दोनों सदनों का कामकाज हिंदी या अंग्रेजी में होता है. ऐसे में सदस्यों को भाषा को लेकर कोई दिक्कत न हो इसके लिए अनुवाद की डबल चैनल प्रणाली 7 सितंबर 1964 को लोकसभा में शुरू की गई थी. ऐसे में जो सदस्य हिंदी या अंग्रेजी में बात नहीं कर पाते थे वो अपनी भाषाओं में अनुवाद करके सुनते थे. नवंबर 1969 में फिर से इस सुविधा को आठवीं अनुसूची की कुछ और भाषाओं के लिए बढ़ा दिया गया. वर्तमान में असमिया, बंगाली, कन्नड़, मलयालम, मणिपुरी, मैथिली, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू भाषाओं में एक साथ अनुवाद की सुविधा उपलब्ध है.
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