फिल्म देखते वक्त सिर्फ पॉपकॉर्न खाने का ही चलन क्यों है... कचौरी-समोसे का क्यों नहीं?
Popcorn During Movies: अक्सर आपने देखा होगा कि जब भी आप फिल्म देखने जाते हैं तो लोग अधिकतर पॉपकॉर्न ही खाते मिलते हैं. कभी सोचा है कि थियेटर में आते ही पॉपकॉर्न पर मन क्यों चलता है?
जब भी आप फिल्म देखने जाते हैं, वहां एक चीज सबसे कॉमन रहती है और वो है पॉपकॉर्न. अक्सर थिएटर में जब भी कुछ खाने का मन करता है तो लोगों की पहली पसंद पॉपकॉर्न ही होती है. जो लोग आम तौर पर पॉपकॉर्न नहीं खाते हैं, वो भी थिएटर में पॉपकॉर्न खाना पसंद करते हैं. खास बात ये है कि थियेटर चाहे कोई भी हो, हर थिएटर में पॉपकॉर्न जरूर मिल जाता है और इंटरवेल के बाद में बहुत से लोगों के हाथ में यह दिख भी जाता है. लेकिन, कभी आपने सोचा है कि आखिर थिएटर में पॉपकॉर्न खाने का चलन क्यों है और लोग अन्य आइटम के बजाय पॉपकॉर्न खाना ही पसंद करते हैं.
ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि थिएटर में पॉपकॉर्न खाने के पीछे की क्या कहानी है और क्यों पॉपकॉर्न खाना पसंद किया जाता है. साथ ही बताते हैं कि आखिर किस तरह से इसका चलन बढ़ा और दुनियाभर में फिल्म के साथ पॉपकॉर्न फेवरेट स्नैक्स बन गया...
क्या है पॉपकॉर्न की कहानी?
पॉपकॉर्न का थिएटर में फेवरेट स्नैक्स बनने की कहानी काफी लंबी है. साथ ही ऐसा कोई एक फैक्ट नहीं है, जिसके जरिए ये कहा जा सके कि किस कारण से पॉपकॉर्न चलन में आए. दरअसल, थिएटर में पॉपकॉर्न का चलन काफी धीरे धीरे बढ़ा था और फिर ये ट्रेंड बन गया और लोग लगातार इसे फॉलो कर रहे हैं. इसे लेकर कई तरह की थ्योरी हैं. एक रिपोर्ट में 'पॉप्ड कल्चर: ए सोशल हिस्ट्री ऑफ पॉपकॉर्न इन अमेरिका' किताब के लेखर एंड्र्यू एफ स्मिथ के हवाले कहागया है कि पॉपकॉर्न का ट्रेंड बढ़ने का कारण इसकी कम रेट, टाइमिंग और कनवेंस हैं. दरअसल, पॉपकॉर्न को काफी जल्दी तैयार किया जा सकता है और यह आसानी से बनाए भी जा सकते हैं. इसके अलावा इसकी कोस्ट काफी कम है, जिस वजह से इसका चलन बढ़ गया.
रिपोर्ट्स के अनुसार, जब थिएटर्स की शुरुआत हुई, उस वक्त यह काफी लग्जरी होते थे और रहीस लोग ही इसमें जाते थे. फिल्म थिएटर में लगे कारपेट, कुर्सी काफी लग्जरी फील देते थे. ऐसे में उस वक्त थिएटर्स में कुछ भी ले जाने की मनाही थी. हालांकि, लोगों को फिल्म समय में कुछ खाने का मन होता था, तो वो कुछ नहीं खा पाते थे. ऐसे में ये डिमांड बढ़ी कि आखिर थिएटर्स में भी खाने की व्यवस्था होनी चाहिए. इसके बाद लोग अपने कोट में ही सामान ले जाने लगे और थिएटर्स के बाहर पॉपकॉर्न जैसे सामान बेचने का कल्चर बढ़ गया. फिर धीरे-धीरे आम लोग भी थिएटर में जाने लगे तो वो अपने साथ पॉपकॉर्न ले जाने लगे.
ऐसे में थिएटर्स मालिक को यह कमाई का जरिया लगने लगा और उन्होंने थियेटर्स के अंदर भी बेचना शुरू कर दिया. माना जाता है कि इसे बनाना काफी आसान था, इसके लिए ज्यादा निवेश और स्थान की जरूरत नहीं थी, इस वजह से यह आइडिया काफी हिट रहा. ऐसे में यह धीरे धीरे चलन में आ गया और उसके बाद से अब तक लोग थियेटर्स में पॉपकॉर्न खाते हैं. अब यह कई सालों से सिस्टम चला आ रहा है तो अभी भी लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं.
ये भी है एक कारण
बताया जाता है कि पॉपकॉर्न का चलन बढ़ने का कारण द्वितीय विश्व युद्ध भी था. इस दौरान चीनी की रेट बढ़ने से कैंडी प्रोडक्शन काफी महंगा हो रहा था, ऐसे में पॉपकॉर्न ने एंट्री मारी. इससे पॉपकॉर्न सस्ता ऑप्शन था और लोगों में जगह बनाने लगा. इसके साथ ही पॉपकॉर्न एक ऐसा आइटम था, जिसे कम खर्च के साथ लंबे समय तक चलाया जा सकता था. यानी लोग काफी देर तक धीरे धीरे ये खाते रहते थे और उनका टाइम पास हो जाता था. ऐसे में पॉपकॉर्न को बेहतर ऑप्शन माने जाने लगा.
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