स्कूलों के एडमिशन में क्यों आई एक करोड़ की गिरावट, जानें किस साल हुए सबसे ज्यादा दाखिले
स्कूलों के एडमिशन में भारी आई है. शिक्षा मंत्रालय की यूडीआईएसई प्लस रिपोर्ट के मुताबिक 2023-24 में स्कूलों में छात्रों के एडमिशन बहुत कम हुए हैं. जानिए किस साल बच्चों के एडमिशन का बढ़ा था ग्राफ.
देश की शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. शिक्षा मंत्रालय की यूडीआईएसई प्लस रिपोर्ट 2023-24 में स्कूलों में भारी कमी दर्ज की गई है. बता दें कि देशभर में दाखिलों की संख्या में 37 लाख की कमी दर्ज की गई है. अब सवाल ये है कि जब साल 2023-24 में इतनी कमी आई है, तो सबसे ज्यादा दाखिला किस साल हुआ था. आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे.
स्कूली एडमिशन में भारी कमी
देश में स्टूडेंट्स की गिरती संख्या शिक्षा क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रही है. यूडीआईएसई प्लस रिपोर्ट 2023-24 की रिपोर्ट ने अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक कारणों को उजागर किया है. डेटा के मुताबिक 2022-23 में 25.17 करोड़ स्टूडेंट्स की संख्या थी, जो 2023-24 में घटकर 24.80 करोड़ पहुंच गई थी. यानी एक साल में स्कूलों में एडमिशन लेने वाले छात्रों की संख्या 37 लाख कम हुए हैं.
स्कूलों में छात्रों और छात्राओं दोनों के एडमिशन में आई कमी
आंकड़ों के मुताबिक स्कूलों में कम एडमिशन लेने में छात्रों और छात्राओं दोनों का आंकड़ा कम है. रिपोर्ट के मुताबिक 2023-24 में दाखिला लेने वाले स्टूडेंट्स में 21 लाख लड़के और 16 लाख लड़कियां कम हुई हैं. वहीं अल्पसंख्यक स्टूडेंट्स का कुल प्रतिनिधित्व लगभग 20 प्रतिशत रहा है, जिनमें 79.6 फीसदी मुस्लिम, 10 प्रतिशत ईसाई, 6.9 प्रतिशत सिख, 2.2 प्रतिशत बौद्ध, 1.3 प्रतिशत जैन और 0.1 प्रतिशत पारसी शामिल हैं.
इस साल की रिपोर्ट थी बेहतर
बता दें कि साल 2023 की रिपोर्ट छात्रों के एडमिशन लेने के मामले में बेहतर थी. उस साल आई रिपोर्ट के मुताबिक भारत के गांवों में 98.4% बच्चे स्कूल जा रहे थे. वहीं 2018 में यह आंकड़ा 97.2% था. उस साल रिपोर्ट के मुताबिक निजी स्कूलों में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या घटी थी. वहीं सरकारी स्कूल में बच्चों का दाखिला बढ़ा था.
कोविड के समय निजी ट्यूशन की बढ़ी थी मांग
रिपोर्ट्स बताता है कि कोरोना महामारी के समय पढ़ाई की क्वालिटी गिरी थी. अनुएल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2022 के मुताबिक उस समय निजी और सरकारी स्कूलों के करीब 31% बच्चे निजी ट्यूशन पर निर्भर थे. इस मामले में बिहार सबसे आगे था, जहां 71.5% और पश्चिम बंगाल में 74% बच्चे ट्यूशन पर निर्भर थे. हालांकि ये आंकड़े उस समय 616 जिलों के 19,060 गांवों में 7 लाख बच्चों पर किए गए सर्वे का नतीजा था.
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