क्या AI बता देगा आप कब मरने वाले हैं...नई रिसर्च में हुआ बहुत बड़ा खुलासा
डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने लाइफ2वेक प्रोग्राम के लिए डेनमार्क के करीब 60 लाख लोगों का डेटा इस्तेमाल किया और इसी के आधार पर उन्होंने कुछ लोगों के मृत्यु का पूर्वानुमान लगाने की कोशिश की.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई अपने नए-नए वर्जन से पूरी दुनिया को हैरान कर रहा है. जितनी तेजी से ये अपडेट हो रहा है, उतनी ही तेजी से ये इंसानों की दुनिया बदल रहा है. अब खबर आई है कि डेनमार्क के कुछ वैज्ञानिक करोड़ों लोगों का डेटा जमा कर रहे हैं ताकि एक एआई मॉडल उस डेटा के आधार पर यह अनुमान लगा सके कि कौन इंसान कितने दिन जिएगा. सबसे बड़ी बात कि अभी तक की रिसर्च में एआई को 78 फीसदी की कामयाबी भी मिल गई है.
क्या है नई रिसर्च
हाल ही में 'नेचर कंप्यूटेशनल साइंस' में एक नई रिसर्च प्रकाशित हुई है. इस रिसर्च में बताया गया कि डेनमार्क के वैज्ञानिक लाइफ2वेक नाम का एक प्रोजेक्ट कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत वैज्ञानिक जानना चाहते हैं कि वो स्वास्थ्य और सामाजिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगा सकते हैं या नहीं. वैज्ञानिक कहते हैं कि वो इस प्रोजेक्ट के तहत बहुत कुछ पता लगा सकते हैं. उनका कहना है कि ये प्रोजेक्ट भी चैटजीपीटी की तरह ही एक एल्गोरिदम और डेटा पर काम करता है.
मौत का पूर्वानुमान
जर्मन न्यूज वेबसाइट डीडब्लू पर छपी एक खबर के अनुसार, डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने लाइफ2वेक प्रोग्राम के लिए डेनमार्क के करीब 60 लाख लोगों का डेटा इस्तेमाल किया और इसी के आधार पर उन्होंने कुछ लोगों के मृत्यु का पूर्वानुमान लगाने की कोशिश की. सबसे बड़ी बात की वैज्ञानिकों को इसमें 78 फीसदी की कामयाबी मिली है. इसके अलावा एआई ने ये भी बता दिया कि कोई व्यक्ति भविष्य में अपना शहर छोड़ कर नई जगह बसेगा या नहीं. इस बारे में एआई को 73 फीसदी कामयाबी मिली.
कितने साल के लोगों पर हुई रिसर्च
वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने इस रिसर्च के लिए 35 से 65 साल के लोगों का डेटा लिया था. डेनमार्क टेक्निकल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जूने लेहमान इस रिसर्च का हिस्सा हैं. उनका कहना है कि वौ और उनकी टीम इस डेटा के आधार पर कम उम्र में होने वाली मौतों को आंकते हैं. जूने लेहमान के मुताबिक, 35 से 65 साल के आयु-वर्ग के लोगों में मृत्यु कम होती है, यही वजह है कि इस आयु के लोगों के डेटा के आधार पर एल्गोरिदम को सत्यापित करना आसान होता है. लेहमान कहते हैं कि फिलहाल ये सॉफ्टवेयर पूरी तरह से निजी है. यानी यह इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं है.
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