उत्तर प्रदेश में जिलों के नाम बदलने का चलन बहुत पुराना है. अभी हाल ही में फैजाबाद को अयोध्या और इलाहाबाद को प्रयागराज किया गया था. इसी तर्ज पर अब मुरादाबाद का नाम बदलने की मांग उठ रही है. दरअसल, श्रीबागेश्वर धाम सरकार के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने सोमवार को हनुमंत कथा के दौरान मांग उठाया कि मुरादाबाद का नाम माधव नगर होना चाहिए.


माधवनगर के पीछे की कहानी


पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने अपनी कथा के दौरान कहा कि इस पीतल नगरी में काली माता का मंदिर है, शीतला माता का मंदिर है, सिद्धबली बाबा का मंदिर है. इसके अलावा बृजघाट गंगा है. यहां रामगंगा नदी सहित कई और नदियां हैं, इसलिए ऐसे शहर को मुरादाबाद नहीं बल्कि माधव नगर कहना चाहिए. हालांकि, अभी तक इस मांग पर कोई राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं आई है और ना ही आधिकारिक रूप से इस पर कोई फैसला किया गया है.


जिले का नाम बदलने में कितना खर्च आता है


किसी जगह का नाम बदलने के पीछे कितने पैसे खर्च होंगे ये तय इस बात से होता है कि आप किस चीज का नाम बदलना चाहते हैं. अगर आप किसी गली या मुहल्ले का नाम बदलना चाह रहे हैं तो उसमें ज्यादा खर्च नहीं आएगा. लेकिन अगर आप किसी शहर का नाम बदलना चाहते हैं तो उसमें लगभग 200 से 500 करोड़ का खर्च हो सकता. वहीं अगर सरकार किसी राज्य का नाम बदलने का फैसला करती है तो इसमें 500 करोड़ से कहीं ज्यादा पैसा खर्च होगा.


किसी शहर के नाम बदलने की प्रक्रिया क्या है


किसी भी शहर का नाम आप ऐसे ही नहीं बदल सकते. इसके लिए एक पूरी प्रक्रिया होती है. आपको बता दें, गृह मंत्रालय की गाइडलाइन के अनुसार, किसी भी शहर, गांव या गली का नाम बदलने से पहले स्थानीय लोगों के भावनाओं का सम्मान करना होता है. इसके बाद इस बात का ध्यान रखना होता है कि इससे लोगों की भावनाओं को कोई ठेस तो नहीं पहुंच रहा.


जानकारी के लिए बदा दें, गली मोहल्ले का नाम बदलने में स्थानीय नगर निगम, नगर पालिका जैसी संस्थाओं की मुख्य भूमिका होती है. वहीं अगर आप जिले या शहर का नाम बदलना चाहते हैं तो इसके लिए कैबिनेट तक प्रस्ताव जाता है. इसके बाद कैबिनेट में प्रस्ताव पास होने के बाद ही शहर या जिले के नाम बदलने के फैसले पर मुहर लगती है. वहीं जब कैबिनेट में प्रस्ताव पारित हो जाता है तब कहीं जाकर इसके बाद नए नाम का गजट पत्र कराया जाता है और फिर उस नए नाम पर आधिकारिक मुहर लगाई जाती है.


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