मंगल ग्रह पर सबको जीवन की आशा है. यही वजह है कि नासा समेत दुनिया भर की तमाम स्पेस एजेंसीज अब मंगल पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं. नासा इस वक्त मंगल ग्रह पर अपने यान को उतारने के लिए एक ऐसी तकनीक अपनाती है जिसमें बेहतरीन पैराशूट, जटपैक और विशाल एयर बैग की जरूरत पड़ती है. हालांकि, इस तकनीक में बहुत ज्यादा खर्च होता है. यही वजह है कि अब नासा एक नए तकनीक पर काम कर रही है. इस लैंडिंग को क्रैश लैंडिंग प्रोसेस कहा जाता है. यानी नासा का यान तेज गति से मंगल ग्रह की सतह से टकराकर अपनी लैंडिंग करेगा. अगर यह सक्सेसफुल हो जाता है तो भविष्य में इस तकनीक का दूसरे ग्रहों पर भी प्रयोग किया जाएगा.


क्या नाम है इस प्रयोग का


तेज गति से अपने स्पेसक्राफ्ट को मंगल ग्रह पर उतारने के इस नए प्रयोग को शील्ड कहा जा रहा है. शील्ड का फुल फॉर्म है, सिंपलीफाइड हाई इंपैक्ट एनर्जी लैंडिंग डिवाइस. नासा का यह प्रयोग बहुत खास है, इसमें यान मंगल ग्रह की सतह से टकराएगा जरूर... लेकिन टकराव के साथ साथ ही वह उसकी ऊर्जा को अवशोषित कर लेगा. अब तक इस पर रिसर्च चल रही है और भविष्य में इसे मंगल ग्रह पर प्रयोग में लाया जाएगा.


बचेगा बहुत पैसा


अगर नासा का यह प्रयोग सफल हो जाता है तो इससे नासा के बहुत सारे पैसे बच जाएंगे. दरअसल, पुरानी तकनीक से लैंडिंग करने में बहुत ज्यादा पैसा खर्च होता है. इसलिए नासा ने यह क्रैश लैंडिंग वाली तकनीक को अपनाने की कोशिश की है. इसके साथ ही अगर नासा ने इस प्रयोग में सफलता पा ली तो वैश्विक स्तर पर ज्यादातर स्पेस एजेंसीज किसी भी उपग्रह पर अपने यान को उतारने के लिए इसी तकनीक का प्रयोग करेंगी.


मुश्किल इलाकों में भी हो पाएगी लैंडिंग


इस नई तकनीक को लेकर नासा ने कहा है कि अगर यह कामयाब रहा तो हम मंगल ग्रह के मुश्किल से मुश्किल इलाकों में आराम से लैंडिंग कर सकेंगे. इससे पहले ऐसे इलाकों में अरबों डालर खर्च करके रोवर को उतारा जाता था और फिर उसके जरिए वहां की जानकारी इकट्ठा की जाती थी. अब सवाल उठता है कि आखिरकार नासा के दिमाग में यह शील्ड वाला आइडिया आया कहां से. दरअसल इस डिजाइन का अधिकांश हिस्सा नासा के मार्च सैंपल रिटर्न कैंपेन से लिया गया है और इसी से प्रेरित होकर उन्होंने इस नए प्रयोग को जन्म दिया है.


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