दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान इराक के नजफ शहर में है. दुनिया इसे वादी-अल-सलाम (शांति की घाटी) के नाम से जानती है. इसके अलावा पश्चिमी देश इसे पीस वैली कह कर संबोधित करते हैं. यह कब्रिस्तान इतना बड़ा है कि इसमें लाखों कब्रें दफ्न हैं. इसकी लंबाई की बात करें तो वादी-अल-सलाम लगभग 6 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है. ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण भी यह कब्रिस्तान इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है.


यहां कितनी कब्रें दफ्न हैं?


बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस कब्रिस्तान में कितनी कब्रें दफ्न हैं इसका सही-सही आंकड़ा तो नहीं बताया जा सकता, लेकिन आज भी यहां हर रोज लगभग 200 लोगों को दफ्नाया जाता है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि सदियों पुराने इस कब्रिस्तान में 50 लाख से ज्यादा लाशें दफ्न हैं.


क्या है इस कब्रिस्तान का इतिहास


वादी-अल-सलाम का इतिहास सदियों पुराना है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस कब्रिस्तान का इस्तेमाल 14वीं सदी से होता आ रहा है. समय के साथ, यह कब्रिस्तान बढ़ता गया और आज दुनिया का सबसे विशाल कब्रिस्तान बन गया. आज यहां इतनी बड़ी संख्या में शव दफ्न हैं कि इसे अब "कब्रों का शहर" भी कहा जाने लगा है. यहां दफ्न होने वालों में आम लोग, धार्मिक विद्वान, योद्धा और कई ऐतिहासिक शख्सियतें शामिल हैं. आसान भाषा में कहें तो इस कब्रिस्तान की मिट्टी किसी में भेदभाव नहीं करती और खास दोनों को अपनी गोद में जगह देती है.


वादी-अल-सलाम का धार्मिक महत्व


बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे पहले इस कब्रिस्तान में इमाम अली को दफनाया गया था. इसके बाद से ही इस्लाम के अनुयायियों के लिए वादी-अल-सलाम महत्व बढ़ गया. इसे 'शांति की घाटी' भी इसी लिए कहा जाता है क्योंकि यहां पर दफ्न होने वालों को शांति और सुकून मिलने का वादा किया गया है. इस कब्रिस्तान में कई धार्मिक हस्तियां, विद्वान और शिया इमाम के अनुयायी दफ्न हैं. विशेष रूप से, शिया समुदाय के लोग यहां पर दफ्न होने को विशेष सम्मान और सौभाग्य मानते हैं.


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