कुछ सालों पहले अक्षय कुमार की एक फिल्म आई थी 'पैड मैन'. इस फिल्म को दर्शकों का खूब प्यार मिला. लोगों ने समाज को संदेश देने वाली इस फिल्म को और अक्षय कुमार के किरदार को खूब सराहा. आज वर्ल्ड टॉयलेट डे के दिन हम जिस किरदार की बात कर रहे हैं उन्हें दुनिया टॉयलेट मैन के नाम से जानती है. चलिए आज इस आर्टिकल में हम आपको इन्हीं की कहानी बताते हैं.


क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड टॉयलेट डे


दुनियाभर में हर साल 19 नवंबर को वर्ल्ड टॉयलेट डे मनाया जाता है. इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2013 में की थी. इस दिन दुनियाभर में लोगों को सुरक्षित और स्वच्छ शौचालय के लिए जागरुक किया जाता है.


कौन हैं टॉयलेट मैन?


दुनिया जिसे टॉयलेट मैन के नाम से जानती है उनका असली नाम बिंदेश्वर पाठक है. बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बाघेल गांव में जन्में बिंदेश्वर ने अपने जीवन में स्वच्छता अभियान को लेकर ऐसे-ऐसे बड़े काम किए कि उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. यहां तक कि वाशिंगटन पोस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में उन्हें मिनी क्रांतिकारी तक बताया. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मिनी क्रांतिकारी ने ना सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी शौचालय उपलब्ध कराने को लेकर उपलब्धि हासिल की थी.


अमेरिकी सेना भी थी मुरीद


बिंदेश्वर पाठक ने अपने मिशन को और बड़ा बनाने के लिए 1970 के दशक में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विसेज की स्थापना की. इस संस्था के जरिए उन्होंने ना सिर्फ देश के बस अड्डों, रेलवे स्टेशन और दूसरी सार्वजनिक जगहों पर शौचालय बनवाए, बल्कि देश से बाहर भी काम किया. जैसे साल 2011 में अफगानिस्तान में अमेरीकी सेना के लिए एक खास तरह के शौचालयों के निर्माण का जिम्मा भी सुलभ इंटरनेशनल ने ही उठाया. ये शौचालय बायो गैस से संचालित होते थे.


समाज कल्याण के लिए परिवार से भी लड़ गए


बिंदेश्वर पाठक जाति से ब्राह्मण थे. इसलिए वो जिस तरह का काम कर रहे थे, उसे उनका समाज स्वीकार नहीं कर पा रहा था. साल 2017 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बिंदेश्वर पाठक ने अपने बचपन की एक घटना का जिक्र करते हुए बताया था कि एक बार जब वह छोटे थे तो उनके घर में एक महिला आई, जो अक्सर तभी आती थी जब किसी का प्रसव होता था. उस महिला के घर से जाने के बाद उनकी दादी ने पूरे घर में गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध किया. ये बात उन्हें समझ नहीं आई. जब इसे लेकर उन्होंने घर वालों से पूछा तो उनसे बताया गया कि वह एक अछूत महिला है, इसलिए उसके जाने के बाद घर को शुद्ध किया गया. ये बात उन्हें काफी बुरी लगी और उन्होंने इसके लिए घर में विरोध करना शुरू कर दिया.


घर वालों को जब उनके विरोध का कोई इलाज नहीं दिखा तो वो लोग एक पुजारी को घर बुला लाए, ताकि वह उन्हें समझा सके. पुजारी ने उन्हें समझाया लेकिन जब वह समझा नहीं पाया तो उसने पाठक के घर वालों से कहा कि बिंदेश्वर संक्रमित हो गए हैं, इसलिए उन्हें घर से निकाल देना चाहिए. इस पर उनकी मां ने विरोध दर्ज कराया. इसके बाद पुजारी ने एक और उपाय बताया जो और कठिन था. इस उपाय में बिंदेश्वर पाठक को गाय का मूत्र और गोबर एक साथ निगलना था. पाठक इंटरव्यू में बताते हैं कि इस घटना ने उनके जीवन को बदल दिया और उन्हें एक उद्देश्य दे दिया कि कैसे वो मैला ढोने और उसे छूने की प्रथा को खत्म कर सकें.


कब हुआ बिंदेश्वर पाठक का निधन?


ऐसे इंसान शारीरिक रूप से भले ही मर जाएं, लेकिन वैचारिक रूप से वो हमेशा ज़िंदा रहते हैं. 15 अगस्त 2023 वो तारीख थी, जब बिंदेश्वर पाठक ने अपनी आखिरी सांस ली. इस इंसान ने इतने महान काम किए थे कि साल 2016 में न्यूयॉर्क में उनके नाम पर बिंदेश्वर पाठक डे सेलिब्रेट किया गया. इसके साथ ही आपको बता दें बिंदेश्वर पाठक को फ्रांस का लीजेंड ऑफ प्लैनेट अवॉर्ड, दुबई इंटरनेशनल अवॉर्ड, एनर्जी ग्लोब अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है.


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