विकास के नाम पर इंसान सदियों से प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते आ रहे हैं. लेकिन अब यही खिलवाड़ उनके जीवन के साथ होने लगा है. प्रदूषित हवा, प्रदूषित पानी तो इंसानों के मौत का कारण बन ही रही थी कि अब इसके साथ-साथ समुद्र के रास्ते भी मौत इंसानों की दहलीज़ पर पहुंचने वाली है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 37 साल बाद अंटार्कटिका में ऐसा कुछ हो रहा है जो आज से पहले कभी नहीं देखा गया था. चलिए जानते हैं दुनिया के सबसे बड़े आइसबर्ग के खिसकने की पूरी कहानी.
अंटार्कटिका में ऐसा क्या हुआ?
हम जिस आइसबर्ग A23a के कहानी की बात कर रहे हैं, उसकी शुरुआत साल 1986 में हुई थी. इसी साल अंटार्कटिका से टूट कर एक हिमखंड अलग हुआ जो देश की राजधानी दिल्ली से तीन गुना ज्यादा बड़ा था. हालांकि, टूटने के बाद ये आइसबर्ग अपनी ही जगह पर स्थिर था. लेकिन अब 37 वर्षों बाद इसमें मूवमेंट देखी गई है. यानी ये अपनी जगह से खिसक रहा है और समुद्र की ओर बढ़ रहा है. वैज्ञानिकों ने इतने बड़े हिमखंड के साथ ऐसा कुछ होते हुए पहले कभी नहीं देखा था. वैज्ञानिक इसके मूवमेंट से चिंता में हैं, क्योंकि इसका प्रभाव ना सिर्फ जीव जंतुओं बल्कि इंसानों पर भी पड़ने वाला है.
इस द्वीप के लिए बना खतरा
रिपोर्ट्स की मानें तो इस हिमखंड से सबसे ज्यादा खतरा जॉर्जिया वालों को है. समुद्र के किनारे बसे इस शहर के ऊपर मौत मंडरा रहा है. दरअसल, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले समय में इस हिमखंड की रफ्तार तेज हो सकती है, ऐसे में अगर ये टूटकर अलग-अलग नहीं हुआ और सीधा जाकर जॉर्जिया द्वीप से टकरा गया तो इससे पूरे द्वीप का विनाश हो सकता है. हालांकि, ज्यादा संभावना ये है कि ये आइसबर्ग बीच रास्ते में ही टूट कर समुद्र में मिल जाएगा. लेकिन इससे भी समुद्र का जलस्तर तो बढ़ ही जाएगा. वैज्ञानिक पहले ही कह चुके हैं कि आने वाले सालों में समुद्र के किनारे बसे शहरों का अस्तित्व खतरे में है.
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