World’s Largest Underwater Telescope: चीन समंदर में क्यों बना रहा है सबसे बड़ा अंडरवाटर टेलीस्कोप?
World’s Largest Underwater Telescope: चीन एक ऐसे टेलीस्कोप को तैयार करने में लगा हुआ है, जिसे आज तक कोई देश बना ही नहीं पाया है. आइए उसके बार में जानते हैं.
World’s Largest Underwater Telescope: चीन समंदर में दुनिया का सबसे ताकतवर टेलीस्कोप बना रहा है. इस वर्ल्ड लार्जेस्ट अंडरवाटर टेलीस्कोप कहा जा रहा है. इसका नाम ट्रिडेंट(Trident) है. 11500 फीट की गहराई में बनने वाले इस खास टेलीस्कोप को घोस्ट पार्टिकल के स्टडी के लिए उतारा जाएगा. अब तक के इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है जब कोई देश समुद्र में स्टडी के उद्देश्य से टेलीस्कोप को उतारेगा. आइए जानते हैं कि इस खास टेलीस्कोप को बनाने के पीछे चीन का मुख्य उद्देश्य क्या है और दुनिया इसको लेकर क्यों चिंतित है?
कितना खास होगा यह टेलीस्कोप
सबसे बड़े समुद्री टेलीस्कोप में 24000 से अधिक ऑप्टिकल सेंसर लगाए जाएंगे. इसे 1211 स्ट्रिंग्स में सेट किया जाएगा. उन सभी स्ट्रिंग्स की ऊंचाई 2300 फीट होगी. जब यह काम करना शुरू करेगा तब इसका सिरा समुद्र के ऊपरी सतह के तरफ किया जाएगा. इसकी क्षमता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यह अपने आसपास के 7.5 क्यूबिक किलोमीटर के इलाकों में न्यूट्रॉन की खोज कर सकेगा.
इससे क्या होगा फायदा?
इस स्कोप को बनाने का टारगेट 2030 तक का तय किया गया है. इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 2026 में होगी. उसके बाद इसका काम न्यूट्रिनो यानी घोस्ट पार्टिकल्स की स्टडी करने का होगा. न्यूट्रिनो वह घोस्ट पार्टिकल्स होते हैं जो व्यक्ति के शरीर से हर सेकंड 100 बिलियन यानी 1000 करोड़ कण बार गुजरते हैं. इसे काउंट करना मुश्किल होता है ना ही इसका कोई वजन होता है. अगर वैज्ञानिक इसकी स्पीड को कम कर देते हैं तो इसकी स्टडी की जा सकती है और यह स्टडी वैज्ञानिकों को इस बात का पता लगाने में मदद करेगी कि अंतरिक्ष में होने वाले विस्फोटों, अंधेरा और स्पेस में होने वाली बड़ी-बड़ी टक्करों में असल में क्या होता है.
बता दें न्यूट्रिनो दुनिया में चारों तरफ मौजूद हैं. यह धरती के सभी दिशाओं में भटकते रहते हैं. विज्ञान बताता है कि ऐसा कोई भी जीव इस धरती पर नहीं है जिसके शरीर से न्यूट्रिनो ना टकराते हों. ब्रह्मांड में मौजूद फोटॉन्स के बाद यह सबसे अधिक पाए जाने वाले सब एटॉमिक कण होते हैं. इनकी उत्पत्ति परमाणु विस्फोट के चलते होती है.
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