इतनी कीमती है दुनिया की सबसे बड़ी टनल, इतने में कई एंटीलिया और बुर्ज खलीफा बन जाएंगे
आपको बता दें, इस टनल में ट्रेनों की अधिकतम स्पीड 250 किलोमीटर प्रति घंटे होती है, जो इसे यूरोप के सबसे तेज़ रेल मार्गों में से एक बनाती है. इस टनल के लंबाई की बात करें तो ये 57 किलोमीटर लंबी है.
दुनिया की सबसे लंबी टनल, स्विट्जरलैंड में स्थित है. इसका नाम है गोथर्ड बेस टनल. स्विट्ज़रलैंड सरकार ने इसे रेल परिवहन के लिए बनाया था. साल 2016 में खोली गई ये टनल लगभग 57 किलोमीटर लंबी है. इस टनल को यूरोप के सबसे महत्वपूर्ण परिवहन मार्गों में से एक माना जाता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस टनल के निर्माण की वजह से स्विट्जरलैंड रेलवे को काफी फायदा हुआ और ट्रेन यात्रा भी पहले के मुकाबले काफी तेज हो गई.
इस टनल को बनाने में कितना पैसा लगा
गोथर्ड बेस टनल के निर्माण का काम 1999 में शुरू हुआ था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके निर्माण में अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया. वहीं इस टनल को बनाने में लगभग 12 साल लगे और इसकी पूरे प्रोजेक्ट में लगभग 12 बिलियन स्विस फ्रैंक यानी लगभग 12.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का खर्च आया.
भारतीय रुपयों में ये आंकड़ा खरबों में पहुंच जाएगा. जितना पैसा इस एक टनल को बनाने में खर्च हुआ है, उतने में एंटीलिया और बुर्ज खलीफा बन जाएंगे. स्विस फेडरल रेलवे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस खर्च में मशीनरी, श्रमिकों की मजदूरी और सुरक्षा उपाय भी शामिल थे. इस टनल को बनाने में लगभग 2,500 मजदूरों ने काम किया था.
इसे किस तरह से बनाया गया है
गोथर्ड बेस टनल की डिज़ाइन में कई खास तकनीकी विशेषताओं को शामिल किया गया, जैसे कि वेंटिलेशन सिस्टम, सुरक्षा उपाय और ट्रेन संचालन की स्पीड. यह टनल दो लेनों में विभाजित है, जिससे यह दो दिशाओं में ट्रेन चलाने की अनुमति देती है. आपको बता दें, इस टनल में ट्रेनों की अधिकतम स्पीड 250 किलोमीटर प्रति घंटे होती है, जो इसे यूरोप के सबसे तेज़ रेल मार्गों में से एक बनाती है.
ये टनल बनाया किसने
गोथर्ड बेस टनल के निर्माण का काम अल्पट्रांजिट गोथर्ड एजी कंपनी ने किया है. ये स्विस फेडरल रेलवे (SBB CFF FFS) की एक सहायक कंपनी है. टनल को बनाने के लिए चार हेर्रेनकेनट ग्रिपर टनल बोरिंग मशीनों का इस्तेमाल किया गया था. इसमें से हर एक मशीन 1,400 फीट लंबी थी. आपको बता दें, सिर्फ इन मशीनों की लागत लगभग 21 मिलियन डॉलर थी. इसके अलावा इसे बनाने में टनल बोरिंग मशीन का इस्तेमाल किया गया था. इस मशीन में लगे हाइड्रोलिक आर्म्स बड़े से बड़े पत्थर को पीस कर चूरा कर देते थे. कहा जाता है कि अगर ये दो मशीनें ना रहतीं तो ये टनल साल 2016 तक ना बन पाती.
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