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World's Population 2022: कोई मीटर तो है नहीं, फिर कैसे पता चलता है दुनिया की जनसंख्या कितनी हो गई?

धरती पर इंसानों की आबादी 800 करोड़ हो गई है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2030 तक इसके 850 करोड़ और 2050 तक 970 करोड़ के आसपास पहुंचने का अनुमान है. आइए जानते हैं इसका अनुमान कैसे लगाया जाता है.

World's Population 2022 : धरती पर इंसानों की आबादी बढ़ती ही जा रही हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इस साल जुलाई में अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि 15 नवंबर तक धरती पर इंसानों की संख्या 800 करोड़ तक पहुंच जाएगी. संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान के आधार पर बताया था कि धरती पर इंसानी आबादी 2030 तक बढ़कर 850 करोड़ और 2050 तक 970 करोड़ के पार तक पहुंच जाएगी. वहीं, 2100 तक इसके हजार करोड़ का आंकड़ा छूने के आसार हैं. अब आपके मन में एक सवाल यह भी आ रहा होगा कि आखिर इसका पता कैसे चलता है? कौनसे मीटर से इसका नापतौल होता है? आइए आज इन सभी सवालों के जवाब भी जानते हैं.

पहले कितनी थी जनसंख्या?

बात अगर 2022 से पहले की करें तो 2011 में दुनिया की आबादी 700 करोड़ थी. जबकि 1998 में यह आंकड़ा 600 करोड़ पर और 11 जुलाई 1987 को 500 करोड़ पर था. इसी वजह से हर साल 11 जुलाई को 'विश्व जनसंख्या दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है. लेकिन सवाल यह है कि ये पता कैसे चलता है कि आबादी कितनी बढ़ गई है और आने वाले समय में कितनी बढ़ जाएगी? क्या इसको मापने का कोई मीटर होता है जो लगातार आबादी को गिनता रहता है? या फिर कोई और ही तरीका है जिससे आबादी के घटने-बढ़ने का पता चलता है? अगर सीधी भाषा में जवाब दें तो वह होगा आंकड़ेबाजी और उसका खेल.

कैसे चलता है पता?

संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (UNFPA) नाम की संस्था आबादी का अनुमान लगाती है. ये संस्था अलग-अलग देशों और इलाकों से जुड़े आंकड़े इकठ्ठा कर उनपर स्टडी करती है और उसके आधार पर आबादी का अनुमान लगाती है. आबादी का पता लगाने के लिए तीन बातें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. पहली होती है जन्म दर, दूसरी है मृत्यु दर और तीसरी होती है माइग्रेशन. खासतौर पर इन्हीं तीन बातों से किसी भी देश की आबादी का पता चल जाता है.

संयुक्त राष्ट्र ने इस साल जुलाई में आबादी को लेकर जो रिपोर्ट पेश की थी, वह 237 अलग-अलग देशों और इलाकों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई थी. ये आंकड़े उन इलाकों और देशों से लिए जाते हैं, जहां लोगों की कम से कम आबादी एक हजार हो.

ये तीन ही क्यों?

जन्म दर, मृत्यु दर और माइग्रेशन से ही किसी देश की आबादी के बारे में पता चलता है. जन्म दर से इस बात का पता चलता है कि एक महिला अपने जीवन में औसतन कितने बच्चों को जन्म देती है. बात अगर 1950 की करें तो उस समय एक महिला औसतन 5 बच्चों को जन्म देती थी, लेकिन आज के दौर में जन्म दर घटी है. आज एक महिला अपने जीवन में औसतन 2.3 बच्चों को जन्म देती है. 2050 तक दुनिया में औसत जन्म दर और घटकर 2.1 होने का अनुमान है. इसी प्रकार मृत्यु दर में भी कमी देखने की मिली है. 2019 में अगर कोई व्यक्ति 65 साल तक जीवित रह जाता है तो उसके और 17.5 साल जीने की संभावना बढ़ जाती है. 1950 की तुलना में  यह 6.2 साल ज्यादा है. अनुमान के अनुसार 2050 तक यह और बढ़कर 19.8 साल हो सकती है.

वहीं, आबादी बढ़ने का तीसरा बड़ा फैक्टर माइग्रेशन है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 1980 से 2000 के बीच हाई इनकम वाले देशों में 10.4 करोड़ से ज्यादा आबादी बढ़ने का कारण माइग्रेशन था. वहीं, 2000 से 2020 के बीच 8 करोड़ से ज्यादा आबादी बढ़ने की वजह भी ही माइग्रेशन था.

कहीं गलत तो नहीं ये अनुमान?

ये सिर्फ एक अनुमान मात्र है. इसके बारे में सटीकता से कुछ नही कहा जा सकता है. यह सही भी हो सकता है और गलत भी हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जिन 237 देशों या इलाकों के डेटा के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है, उनमें से कुल 152 देश या इलाके ही ऐसे हैं जिनका डेटा 2015 और उसके बाद का है. बाकी सभी 74 देशों के आंकड़े 2005 से 2015 के बीच के हैं, जबकि इसमें 11 देशों और इलाकों के आंकड़े तो 2005 से भी पहले के हैं. इसका अर्थ यह है कि संयुक्त राष्ट्र के लगाये हुए इस अनुमान में गलती भी हो सकती है और यह सही भी हो सकता है. 

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