हिंदुओं में जब पवित्र जल की बात आती है तो सबसे पहला स्थान गंगा जल का होता है. वैसे ही मुस्लिमों में आब-ए-जमजम के पानी को सबसे पवित्र माना जाता है. ये पानी इतना पवित्र होता है कि हज पर गए लोग इसे जरूर पीते हैं. आब-ए-जमजम की सबसे खास बात ये है कि इसका सोर्स ऐसे इलाके में हैं जहां पानी प्राकृतिक रूप से बड़ी मुश्किल से मिलता है. हालांकि, इसके बावजूद सदियों से आब-ए-जमजम से पानी लगातार निकल ही रहा है. चलिए इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.


कहां है आब-ए-जमजम


आब-ए-जमजम सऊदी अरब के मक्का शहर में है. ये एक कुआं है, जिसके बारे में मान्यता है कि ये लगभग 4000 साल पुराना है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस्लाम के जानकार बताते हैं कि अल्लाह ने पैगंबर इब्राहिम को आदेश दिया कि वो अपनी बीवी हजरा और बेटे इस्माइल को फलस्तीन से अरब ले जाएं. इस यात्रा के दौरान उन्हें खाने-पीने की चीजें भी दी गईं. हालांकि, कुछ ही समय में ये चीजें खत्म हो गईं.


इसके बाद जब पैगंबर इब्राहिम की पत्नी हजरा और बेटे इस्माइल भूख-प्यास से बेहाल हो गए, तो उन्होंने अल्लाह से अपनी परेशानी का हल मांगा. कहा जाता है कि जैसे ही दुआ मांगी गई, तभी बैगंबर के बेटे इस्माइल ने जमीन पर अपना पैर पटका और वहीं से धरती को चीरकर पानी का फव्वारा निकल गया. आज इसी जगह को पूरी दुनिया आब-ए-जमजम के नाम से जानती है.


आब-ए-जमजम पर रिसर्च


साल 2018 में आब-ए-जमजम पर एक रिसर्च हुई थी. इस रिसर्च को किया था एफरिकन रिसर्च इंस्टिट्यूट के जिओलॉजी प्रोफेसर अब्बास शराकी की टीम ने. इसके मुताबिक, 30 मीटर गहरे इस कुएं में 13 मीटर तक पानी था और 17 मीटर तक चट्टानें. इस रिसर्त में पता चला कि आब-ए-जमजम के पानी का सोर्स निन्यूवल वॉटर है. दरअसल, मक्का एक पहाड़ी क्षेत्र है, इस क्षेत्र में कई घाटियां हैं. इन्हीं घाटियों में से एक घाटी इब्राहिम है जहां आब-ए-जमजम है.


जब बारिश होती है तो पानी इस घाटी में इकट्ठा हो जाता है और फिर सतह से होते हुए आब-ए-जमजम तक पहुंच जाता है. यही वजह है कि यहां पानी हमेशा बना रहता है. इसके अलावा यहां के पानी के खत्म ना होने के पीछे जो राज है, वो ये है कि इस पानी का दोहन ज्यादा नहीं होता है. इसे सिर्फ पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. आब-ए-जमजम के पानी से खेती नहीं होती और ना ही इस पानी का इस्तेमाल दूसरे कामों में लिया जाता है.


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