Long COVID and kids: कोविड-19 (Covid-19) से संक्रमित होने वाले बच्चे आम तौर पर तेजी से स्वस्थ होते हैं और उन्हें स्कूल लौटने पर विशेष सहयोग की आवश्यकता नहीं होती है. हालांकि, इस बीमारी की चपेट में आने वाले कुछ बच्चों में पोस्ट कोविड इफेक्ट का अनुभव किया गया है. इन लक्षणों में थकान, सांस लेने में दिक्कत, ‘ब्रेन फॉग’, स्वाद और गंध में बदलाव और सिर में दर्द समेत अन्य दिक्कतें शामिल हैं. चिकित्सा समुदाय में इसे ‘‘पोस्ट कोविड इफेक्ट’’ कहा जाता है.


वहीं लंबे समय तक कोविड से प्रभावित होने वाले बच्चों को स्कूलों में सहयोग की आवश्यकता होगी. कुछ लक्षण जैसे कि थकान, ‘ब्रेन फॉग’ और याददाश्त कमजोर होना ऐसे ही लक्षण हैं जिनका अनुभव मस्तिष्काघात (Concussion) के बाद होता है. चूंकि इन लक्षणों को पहचानना या इन पर नजर रखना चुनौतीपूर्ण होता है, इसलिए यह शिक्षकों के लिए भी यह मुश्किल है कि कैसे मदद की जाए. वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ डेटन के स्कूल ऑफ साइकोलॉजी के प्रोफेसर सुसैन डेवीस और एसोसिएट प्रोफेसर जून वाल्श-मेसिंगर ने अपने एक अध्ययन में बताया है कि बच्चों में लंबे समय तक कोविड के लक्षण रहने और उससे जुड़ी मानसिक स्वास्थ्य के नतीजों से निपट सकते हैं.


चाइल्ड स्पेशलिस्ट की लेनी चाहिए सलाह


अध्य्यन में कहा गया कि लंबे समय तक कोरोना वायरस से संक्रमित रहने के बाद जरूरी नहीं सभी मरीजों को शारीरिक लक्षणों का अनुभव हो. हालांकि जब कोरोना से ठीक होने के कुछ हफ्तों या उससे ज्यादा वक्त तक लक्षण दिखे तो हमें तुरंत कोविड की जानकारी रखने वाले बाल चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए. कोविड के बाद बाल चिकित्सा क्लिनिक ऐसे डॉक्टरों को तलाशने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है. हालांकि अभी अमेरिका में ऐसे क्लिनिक ज्यादा नहीं हैं. हालांकि अबतक किए गए स्टडी के अनुसार ज्यादातर पोस्ट कोविड इफेक्ट वयस्कों में ही देखे गया है.


स्टडी के अनुसार कोविड-19 से संक्रमित न होने की रिपोर्ट आने के बाद भी जिन बच्चों को लक्षणों का अनुभव होता रहता है और स्कूल लौटने के लिए जिन्हें मंजूरी दे दी गयी है, उन्हें स्कूल को अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में बताना चाहिए. अगर बच्चा आधिकारिक रूप से लंबे समय तक कोविड से संक्रमित नहीं पाया जाता तो धीरे-धीरे स्कूल लौटने और अकादमी के साथ धीरे-धीरे गतिविधियां करने से बच्चों को स्वस्थ होने में मदद मिल सकती है.


शिक्षकों को डॉक्टर के साथ मिलकर करना चाहिए काम


स्टडी में कहा गया कि अभिभावकों, शिक्षकों और डॉक्टरों को बच्चों के स्वस्थ होने में मदद के लिए एक साथ मिलकर काम करना होगा. अगर स्कूल में कोई पेशेवर जैसे कि स्कूल नर्स, चाइल्ड स्पेशलिस्ट मौजूद हो तो बच्चों को काफी मदद मिल सकती है. इसके साथ ही टीचर्स को ध्यान रखना होगा कि बच्चों में थकान और सिर दर्द को रोकने के लिए स्कूल में होने वाली शारीरिक गतिविधि को कम करवाया जाए. 


काम के दबाव को कम करना है महत्वपूर्ण


इसके अलावा अध्य्यन में कहा गया कि बच्चों के सेहत में जल्द सुधार हो इसके लिए काम के दबाव को कम करना भी महत्वपूर्ण है. इसके लिए शिक्षकों को ज्यादा चुनौतीपूर्ण परियोजनाएं और अनावश्यक काम हटाना होगा, इसी के तहत बच्चों को कम काम देना और छात्रों को बिना किसी दंड के कक्षाओं में अनुपस्थित रहने की अनुमति देना शामिल है. वहीं स्कूल में बच्चों को काम पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय देना होगा ताकि ‘ब्रेन फॉग’ से पीड़ित बच्चे को मदद मिल सके.


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