इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने पिछले साल डेंगू के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए और इससे न घबराने की सलाह दी थी. साथ ही कहा था कि वर्ष 2013 के मुकाबले अब होने वाला डेंगू जानलेवा नहीं है. डेंगू 'टाइप 4' में जान को ज्यादा खतरा नहीं होता. एचसीएफआई के अध्यक्ष और आईएमए के जनरल सेक्रेटरी डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया था कि गंभीर लक्षणों वाले डेंगू के मामलों में ही अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत है. ज्यादातर मामलों में ओपीडी ही काफी है. प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन की जरूरत सिर्फ तब होती है, जब प्लेटलेट्स की संख्या 10000 से कम होती है और ब्लीडिंग हो रही हो.


मशीन से जांच के दौरान दिखाई जा रही 40000 तक की प्लेट्लेट्स की संख्या गलत हो सकती है और विश्वसनीय नहीं है. इसकी उचित जांच हाईमाटोक्रिट से होती है ना कि प्लेटलेटस काउंट से लेकिन बहुत से मामलों में यह जांच किए बगैर केवल उच्च और निम्न रक्तचाप में अंतर मापकर इसकी जांच की जा सकती है. नब्ज का दबाव 40 एमएम एजजी से ज्यादा रखना चाहिए.

वहीं, आईएमए के प्रतिनिधियों डॉ. वीके मोंगा और डॉ. आरएन टंडन ने कहा कि डेंगू के ज्यादातर मरीजों की देखभाल मुंह से तरल आहार देकर की जा सकती है.

उन्होंने बताया कि डेंगू आम तौर पर डेन1, डेन2, डेन3 और डेन4 सरोटाइप का होता है. 1 और 3 सरोटाइप के मुकाबले 2 और 4 सेरोटाइप कम खतरनाक होता है.

टाइप 4 डेंगू के लक्ष्णों में शॉक के साथ बुखार और प्लेट्लेट्स में कमी, जबकि टाइप 2 में प्लेट्लेट्स में तीव्र कमी, हाईमोरहैगिक बुखार, अंगों में शिथिलता और डेंगू शॉक सिंडरोम प्रमुख लक्षण हैं.

डेंगू की हर किस्म में हीमोरहैगिक बुखार होने का खतरा रहता है, लेकिन टाइप 4 में टाइप 2 के मुकाबले इसकी संभावना कम होती है. डेंगू 2 के वायरस में गंभीर डेंगू होने का खतरा रहता है.

जब एक किस्म की बीमारी लंबे समय तक रहती है तो बड़ी संख्या में लोगों की प्रतिरोधक क्षमता उसके लिए बन जाती है और इस बीमारी के मामले बहुत कम आने लगते हैं. लेकिन टाइप 4 के मामले तो कभी भी इतनी बड़ी संख्या में सामने नहीं आए. एक नई किस्म हमेशा महामारी की तरह लगती है.

एक बार एक किस्म के डेंगू से पीड़ित हो जाने के बाद मरीज के शरीर में जिंदगी भर के लिए उस किस्म के वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है. लेकिन दूसरी किस्म के डेंगू के वायरस से पीड़ित होने की संभावना बनी रहती है. दूसरी किस्म के वायरस से दोबारा डेंगू होना गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है.

बढ़ती उम्र के साथ गंभीर डेंगू होने का खतरा कम होता जाता है, खास कर 11 साल की उम्र के बाद.

आम डेंगू बुखार में सिर दर्द, रेटरो ओरबिटल पेन, मांसपेशियों में खिचाव और जोड़ों में दर्द होता है. यह लक्ष्ण मच्छर के काटने के 4 से 7 दिनों के बाद दिखाई देने लगते है. इनक्यूबेशन अवधि 3 से 14 दिन तक हो सकती है. बुखार 5 से 7 दिन तक रहता है. इस दौरान कमजोरी दिनों से लेकर हफ्तों तक रह सकती है, खास कर बालिगों में जोड़ों का दर्द, बदन दर्द और महिलाओं में रैशेस हो सकते हैं.

डेंगू में बुखार खत्म हो जाने के बाद जटिलताएं पैदा होती हैं. बुखार ठीक होने के बाद के दो दिन बेहद संवेदनशील होते हैं और इस अवधि के दौरान मरीज को अत्यधिक तरल आहार लेना चाहिए, जिसमें नमक और चीनी मिश्रित हो.

इसमें मुख्य समस्या कैपिलरीज में रिसाव और रक्त नलिकाओं के बाहर रक्त का जमाव होने से होती है, जिससे इंट्रावसकुलर डीहाईडरेशन हो जाती है. उचित समय पर मुंह से या नाड़ी से दिया गया तरल आहार जानलेवा जटिलताओं से बचा सकता है.