देश में मुंह और गले के कैंसर रोगियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. आलम यह है कि हर वर्ष मुंह और गले के कैंसर से पीड़ित 10 लाख रोगी सामने आ रहे हैं, जिनमें से आधे से अधिक मरीजों की मौत बीमारी की पहचान होने तक हो जाती है.

वायस ऑफ टोबैको विक्टिमस (वीओटीवी) ने एशियन पेसिफिक जनरल ऑफ कैंसर प्रिवेंशन द्वारा जारी रिपोर्ट के आधार पर यह खुलासा किया है.

वायस ऑफ टोबैको विक्टिमस (वीओटीवी) के संरक्षक डॉ टी़ पी़ साहू ने बताया कि देशभर में लाखों लोगों में देर से इस बीमारी की पहचान, अपर्याप्त इलाज व अनुपयुक्त पुनर्वास सहित सुविधाओं का अभाव है. करीब 30 साल पहले तक 60 से 70 साल की उम्र में मुंह और गले का कैंसर होता था, लेकिन अब यह उम्र कम होकर 30 से 50 साल तक पहुंच गई है.

उन्होंने कहा कि आजकल 20 से 25 वर्ष की उम्र से भी कम के युवाओं में मुंह व गले का कैंसर देखा जा रहा है. इसका सबसे बड़ा कारण हमारी सभ्यता में पश्चिमी सभ्यता के समावेश तथा युवाओं में स्मोकिंग को फैशन व स्टाइल आइकॉन मानना है. मुंह के कैंसर के रोगियों की सर्वाधिक संख्या भारत में है.

भारत में विश्व की तुलना में धुआंरहित चबाने वाले तंबाकू उत्पाद (जर्दा, गुटखा, खैनी) का सेवन सबसे अधिक होता है. यह सस्ता और आसानी से मिलने वाला नशा है. पिछले दो दशकों में इसका प्रयोग बढ़ा है, जिस कारण भी सिर व गले के कैंसर के रोगी बढ़े हैं.

डॉ़ साहू कहते हैं, "इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा वर्ष 2008 में प्रकाशित अनुमान के मुताबिक, भारत में सिर व गले के कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है. इन मामलों में 90 फीसदी कैंसर तंबाकू, शराब व सुपारी के सेवन से होते हैं और इस प्रकार के कैंसर की रोकथाम की जा सकती है."

आईसीएमआर की रिपोर्ट में भी इस बात का खुलासा किया गया है कि पुरुषों में 50 प्रतिशत और स्त्रियों में 25 प्रतिशत कैंसर की वजह तंबाकू है. इनमें से 60 प्रतिशत मुंह के कैंसर हैं. धुआं रहित तंबाकू में 3000 से अधिक रासायनिक पदार्थ हैं, जिनमें से 29 रसायन कैंसर पैदा कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि मुंह व गले के कैंसर के मामले राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजनाओं, वंचित लोगों, परिवारों व समुदायों पर भार बढ़ा रहे हैं. मुंह व गले के कैंसर से जुड़े अधिकांश मामलों में यदि बीमारी की पहचान पहले हो जाए, तो इसे रोका जा सकता है और इलाज भी किया जा सकता है. लेकिन लाखों लाखों लोग रोग की देर से पहचान, अपर्याप्त इलाज व अनुपयुक्त पुनर्वास सुविधाओं के शिकार हो जाते हैं.

टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल (टीएमएच) के कैंसर सर्जन डॉ.पंकज चतुर्वेदी जो इस अभियान की वैश्विक स्तर पर अगुवाई कर रहे हैं, कहते हैं, "सिर व गले के कैंसर के नियंत्रण के लिए सरकारों, एनजीओ, चिकित्सा व स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों, शिक्षा व उद्योग संस्थानों सहित सभी के सहयोग की आवश्यकता है."

उन्होंने बताया कि हेड नेक कैंसर पर प्रभावी नियंत्रण और इलाज की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय फेडरेशन ऑफ हेड एंड नेक ऑन्कोलॉजिकल सोसाइटिज (आईएफएचएनओएस) ने 27 जुलाई को विश्व सिर, गला कैंसर दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव रखा और यह मनाया जाने लगा. फेडरेशन को इसके लिए अनेक सरकारी संस्थानों, एनजीओ, 55 से अधिक सिर व गला कैंसर संस्थानों व 51 देशों का समर्थन प्राप्त है.

डॉ़ पंकज चतुर्वेदी बताते हैं कि एशियन पेसिफिक जर्नल ऑफ कैंसर प्रिवेंशन द्वारा 2008 व 2016 में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार, 2001 में पुरुषों में मुंह का कैंसर के मामले 42,725 वहीं 2016 में 65,205 थे, वहीं महिलाओं में 22,080 व 35,088 मामले सामने आए. गले और सांस नली के कैंसर के मामले 2008 व 2016 में पुरुषों में 49,331 और 75,901 जबकि महिलाओं में 9251 तथा 14550 हो गया है.

उन्होंने कहा कि इस अवधि में कैंसर पीड़ितों की संख्या सात लाख 96 हजार से बढ़कर 12 लाख 29 हजार से ज्यादा हो गई है. इस तरह 15 वर्षो में कैंसर रोगियों की संख्या में चार लाख 32 हजार से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है.

उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 में जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुटका प्रतिबंध के प्रभावों पर एक अध्यन कराया. अध्ययन के दौरान देश के सात राज्यों असम, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा और दिल्ली में 1,001 वर्तमान व पूर्व गुटका सेवनकर्ताओं और 458 खुदरा तंबाकू उत्पाद विक्रताओं पर सर्वेक्षण किया गया.

इस सर्वेक्षण में सामने आया कि 90 फीसदी ने उपयोगकर्ताओं ने इच्छा जताई कि सरकार को धुआं रहित तंबाकू के सभी प्रकार के उत्पादों की बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए. इस पर 92 फीसदी लोगों ने प्रतिबंध का समर्थन किया.

99 फीसदी लोगों ने कहा कि भारतीय युवाओं के स्वाथ्य के लिए प्रतिबंध अच्छा है. जो लोग प्रतिबंध के बावजूद गैरकानूनी ढंग से डिब्बा बंद तंबाकू का सेवन करते हैं, उनमें से आधे लोगों ने कहा कि प्रतिबंध के बाद उनके गुटका सेवन में कमी आई है.

80 फीसदी लोगो ने विश्वास जताया कि प्रतिबंध ने उन्हें गुटका छोड़ने के लिए प्रेरित किया है और इनमें से आधे लोगों ने कहा उन्होंने वास्तव में छोड़ने की कोशिश भी की है.

इंडेक्स ऑफ इंड्रस्टियल प्रोडक्शन के आंकड़े बताते हैं कि सिगरेट, बीड़ी व चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का उत्पादन मार्च, 2015 में पिछले वर्ष की अपेक्षा 12़1 फीसदी गिर गया है. चबाने वाले तंबाकू उत्पाद पर प्रतिबंध के प्रभाव यूरोमोनिटर इंटरनेशनल की रिपोर्ट दर्शाती है, जिसके मुताबिक, धुआंरहित तंबाकू उत्पादन में गिरावट देखी गई है.