रात को सोते वक्त खर्राटा लेने वाले वैसे लोग जिन्हें ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया की समस्या होती है, उन्हें रात में बार-बार पेशाब (नॉकटूरिया) आता है. ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया यानी सोते समय सांस बंद हो जाने की समस्या है. स्लीप एपनिया की वजह से रात को सांस लेने में आने वाली रुकावट से मौत का खतरा बढ़ जाता है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव पद्मश्री डॉ.के.के.अग्रवाल के मुताबिक, ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया में गले के पीछे के नाजुक तंतु सोते समय अस्थाई रूप से काम करना बंद कर देते हैं, जिसके कारण कुछ पलों के लिए मरीज सांस नहीं ले पाता. इसका इलाज सांस लेने वाले सीपीएपी उपकरण से आसानी से किया जा सकता है, जो गले के अंदर हवा भेज कर इन तंतुओं को बंद होने से रोकता है.

योरोलॉजी नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित डॉ.योजी मोरीयामा के अध्ययन का हवाला देते हुए डॉ.अग्रवाल ने कहा, "स्लीप एपनिया के 41 प्रतिशत मरीजों में नॉकटूरिया पाया जाता है. नॉकटूरिया का खतरा सीधे तौर पर स्लीप एपनिया की गंभीरता से जुड़ा है. 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में यह ज्यादा गंभीर होता है."

अध्ययन में पाया गया है कि खर्राटे लेते वक्त स्लीप एपनिया से मौत का खतरा बढ़ जाता है. 'स्लीप' नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐपनिया से पीड़ित सभी लोगों में यह खतरा पाया जाता है. अध्ययन में पता चला है कि खतरा छह गुना बढ़ जाता है, जिसका मतलब है कि 40 की उम्र में स्लीम एपनिया होने से मौत का खतरा उतना ही होता है, जितना 57 साल की उम्र वाले व्यक्ति को बिना स्लीप एपनिया के होता है.

बुसलटन हेल्थ स्टडी के लिए एक टीम ने 40 से 65 साल की उम्र के 380 पुरूषों और महिलाओं के आंकड़े इकट्ठे किए. इनमें से तीन को गंभीर ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐपनिया था, 18 को मध्यम स्तर का और 77 को हलके स्तर का स्लीप एपनिया था. बाकी 285 लोगों को यह समस्या नहीं थी. 14 साल की पड़ताल के दौरान उन 33 प्रतिशत लोगों की मौत हो गई, जिन्हें मध्यम से गंभीर स्तर का स्लीप एपनिया था. जबकि इनकी तुलना में हलके स्लीप एपनिया वालों में 6.5 प्रतिशत और बिना स्लीप एपनिया वालों में 7.7 प्रतिशत ऐसे मामले पाए गए. हलके स्लीप एपनिया वाले लोगों में मौत का खतरा ज्यादा नहीं था और इसका संबंध इस समस्या से नहीं जोड़ा जा सकता.

जिन लोगों को स्लीप एपनिया है या लगता है, तो उन्हें अपनी जांच और इलाज के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.