शोधकर्ताओं के दल ने हॉस्पिटल डे बेस, साओ जोस डो रियो प्रेटो रेफरेंस अस्पताल के आपातकाल सेवा में जनवरी से अगस्त 2016 के बीच करीब 800 डेंगू से पीड़ित होने के संदेह वाले मरीजों के खून की जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है.
इनमें से 100 मामले जीका वायरस के पाए गए तथा एक मरीज चिकनगुनिया बुखार से पीड़ित मिला.
नोगेरिया कहते हैं, "हमारे नतीजों से पता चलता है कि डेंगू, जीका और चिकनगुनिया के लक्षणों के बीच जो सूक्ष्म भेद बताया जाता है वह केवल कक्षा में पढ़ाए जाने योग्य ही होता है. वास्तविकता में इसकी जांच की जाती है तो इन रोगों के लक्षण आपस में इतना मिलते हैं कि गलती की संभावना काफी अधिक हो जाती है. साथ ही इन तीनों वायरस के बीच का अंतर सेरोलॉजिकल टेस्ट से पता लगाना लगभग असंभव है जो धड़ल्ले से विभिन्न अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में किए जा रहे हैं."
यह शोध जर्नल ऑफ क्लिनिकल वायरोलॉजी में प्रकाशित किया गया है. इसमें बताया गया है कि हालांकि अब नए सेरोलॉजिकल तरीकों से जीका और डेंगू के एंटीबॉडीज के बीच भेद कर पाना काफी आसान है, लेकिन इसका प्रयोग सिर्फ शैक्षिक अनुसंधान में किया जा रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एचओ) ने सिफारिश की है कि वैसे सभी मामले जिसमें डेंगू, चिकनगुनिया या जीका के बारे में संदेह हो, उसका इलाज डेंगू संक्रमण के इलाज के तरीकों से ही किया जाना चाहिए क्योंकि इन तीनों में डेंगू सबसे घातक है.